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________________ अन्तरात्मा सम्यग् दर्शन का अर्थ जहां-जहां विभ्रम होता है, वहां-वहां चेष्टाएं बदल जाती हैं । अन्तरात्मा होने पर भ्रम टूट जाता है । बहिरात्मा भ्रम का जीवन जीता है। जैसे ही व्यक्ति अन्तरात्मा बनता है, भ्रांतियां टूट जाती हैं, सचाई सामने प्रस्तुत हो जाती है। जो जैसा होता है वह वैसा ही दिखने लग जाता है । अन्तरात्मा का मतलब है- यथार्थवाद और सम्यग् दर्शन | जब सम्यग्दृष्टि के क्षण जीवन में आते हैं, सब कुछ बदल जाता है । कोपला विवर्तन्ते, श्रेयः प्रेयोऽभबाधते । देहस्थाने स्थितश्चात्मा, जाते सम्यक्त्वदर्शने ॥ सम्यग् दर्शन के प्राप्त होने पर कसौटियां बदल जाती हैं, प्रेय श्रेय से बाधित हो जाता है और आत्मा देह के स्थान पर स्थित जाती है । १४३ जब सम्यग् दर्शन प्रकट होता है, परमानन्द उदित होता है तब सारी कसौटियां बदल जाती हैं, सारे मापदण्ड बदल जाते हैं। मिथ्यादृष्टि की कसौटी में वह व्यक्ति बड़ा है, जिसके पास धन ज्यादा है, सत्ता ज्यादा है, शक्ति ज्यादा है । उसकी दृष्टि में सम्राट् श्रेणिक बड़ा होगा, पूनिया श्रावक बड़ा नहीं होगा । जब सम्यग् दर्शन उपलब्ध होता है, यह कसौटी बदल जाती है । सम्यग् दृष्टि व्यक्ति की दृष्टि में सम्राट् श्रेणिक बड़ा नहीं होगा । श्रेणिक आज राजा है लेकिन कल क्या होगा ? कहां जाएगा ? भगवान् महावीर ने कह भी दिया था -- श्रेणिक ! तुम मरकर नरक में जाओगे । जिस श्रेणिक से हजारों आदमी कांपते थे, वह नरक में जाएगा और स्वयं प्रकम्पित बना रहेगा। ऐसा व्यक्ति बड़ा कैसे हो सकता है ? बड़ा वही है, जिसने सम्यग् दर्शन पा लिया । वह यहां भी शान्ति का जीवन जिएगा और आगे भी शांति का जीवन जिएगा । मूल्यांकन की दृष्टि बहिरात्मा प्रत्येक घटना या पदार्थ का मूल्यांकन प्रियता के आधार पर करता है । जो चीज खाने में अच्छी है, प्रिय लगती है व्यक्ति उसे खाने के लिए लालायित बना रहता है । चाहे उससे आंतें खराब हो जाएं, स्वास्थ्य बिगड़ जाए । उसके सामने स्वास्थ्य का प्रश्न गौण होता है और प्रियता मुख्य । जब तक आदमी बहिरात्मा बना रहता है, अपनी आत्मा के बाहर चक्कर लगाता रहता है तब तक उसकी दृष्टि प्रेयोन्मुखी बनी रहती है । व्यक्ति जैसे ही अन्तरात्मा बनता है, उसके मूल्यांकन का आधार बदल जाता है । वह घटना या पदार्थ को प्रियता की दृष्टि से नहीं देखेगा । उसकी दृष्टि श्रेयोन्मुखी होगी । उसके लिए प्रेय के स्थान पर श्रेय मुख्य बन जाएगा । जब सम्यग् दर्शन अभिव्यक्त होता है, व्यक्ति अन्तरात्मा बन जाता है । बहिरात्मा से अन्तरात्मा बनने का अर्थ है- जिस सिंहासन पर शरीर बैठा है, उस सिंहासन पर आत्मा को बिठा देना । उसकी दृष्टि में शरीर का आधार आत्मा बन जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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