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________________ अन्तरात्मा क्षितिज वह बिन्दु है, जहां धरती और आकाश- दोनों मिल जाते हैं । बहिरात्मा वह बिन्दु है, जहां शरीर और आत्मा—दोनों मिल जाते हैं । उनका अस्तित्व अलग होता ही नहीं । क्षितिज में जिया नहीं जा सकता । उसकी कल्पना की जा सकती है। वह दृष्टि का भ्रम हो सकता है । वस्तुतः जीना और रहना धरती पर है । यहां सारे भ्रम टूट जाते भूमि भूमि है गगन गगन है नहीं गगन में भूमि नहीं भूमि में गगन गगन भूमि के संबंधों में विभ्रम-विभ्रम मति का भ्रम है। हमने भूमि और आकाश को एक मान लिया और क्षितिज की कल्पना कर डाली। जब यह भ्रम टूटता है तब गगन गगन रहता है और भूमि भूमि । निश्चय नय की भाषा उपचार की भषा है- आकाश मे सब हैं । निश्चय नय की भाषा होगी- सर्व आत्मप्रतिष्ठितम् सब आत्म प्रतिष्ठित हैं। कोई किसी में नहीं है। जहां वास्तविक सत्य है, वहां आधार और अधेय का संबंध समाप्त हो जाता है, सारे आत्म-प्रतिष्ठित होते हैं। निश्चय नय की भाषा में हमारी दृष्टि होती है- आत्मा आत्मा है, शरीर शरीर है । शरीर में आत्मा नहीं है और आत्मा में शरीर नहीं है। शरीर की सत्ता अपने आप में है, आत्मा की सत्ता अपने आप में है। हमने भ्रमवश उन्हें एक मान लिया । तर्कशास्त्र में कहा जाता है- उत्पन्नपुरुषांतेः स्थाणौ यद्वद् विचेष्टितम् । स्थाणु में पुरुष की कल्पना एक भ्रम है | किसी व्यक्ति ने स्थाणु- स्तंभ को देखा और उसे पुरुष मान लिया । वह उससे भ्रांत हो जाता है, उसकी चेष्टाएं बदल जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003134
Book TitleSamasya ko Dekhna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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