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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन १८६ प्रति नहीं, अपनी वृत्तियों के प्रति होना चाहिए ताकि बुराई से समझौता न करने के कारण पैदा होने वाली कठिनाइयों का दृढ़ता से सामना कर सके । (ग) साथी मायावी है। वह छल से चलता है। कहता कुछ है और करता कुछ है। मन में कुछ है और बाहर से कुछ ही दिखाता है। इस हालत में अहिंसक उसके साथ कैसे चले? अहिंसक का दिल साफ होना चाहिए। चलते-चलते पैतरा बदलना उसके लिए उचित नहीं। माया वह करता है, जो अन्दर की कमजोरियों के बावजूद भी अपने को बहुत बड़ा व्यक्ति सिद्ध करना चाहता है। अहिंसक में बड़ा बनने की भूख नहीं होनी चाहिए। फिर वह माया क्यों करे ? वह हर काम सचाई के साथ करे। जो बात दिल में आए, वह साफ-साफ कह दे। कहने का अवसर न हो तो मौन रख ले किन्तु दिल में कुछ और कहे कुछ, ऐसा कभी न करे। किसी को झूठा विश्वास दिलाना बहुत बड़ी हिंसा है। अहिंसक को चाहिए कि वह अपनी कमजोरियों को छिपाए नहीं। दूसरों को धोखे में रखना बड़ी भूल है। मायावी की चालों को समझना जरूर चाहिए । चालाकी को समझना हिंसा नहीं है । हिंसा है चालाकी करना । अहिसक में फलाशा नहीं होनी चाहिए। एक के बदले दस पाने की लालसा नहीं होनी चाहिए। इससे माया की वृत्ति बढ़ती है। सरलता से बरतने वाला दूसरों को भी सरल बना देता है। सम्भव है कोई न भी बने, फिर भी अहिंसक के लिए तो सरलता के सिवा दूसरा विकल्प ही नहीं है। (घ) साथी लोभी है। वह हर काम लालच से करता है, स्वार्थ को आगे किए चलता है। अपनी चीजों पर ममत्व है। उनकी चिन्ता करता है। दूसरों की वस्तुओं का प्रयोग करता है। अच्छी चीजों पर टूट पड़ता है। उसकी चीजों का दूसरा कोई उपयोग करे तो बिगड़ जाता है। खान-पान की भी आसक्ति है। अहिंसक को उसे कैसे पाना चाहिए। अहिंसक की भूमिका परमार्थ की होती है। वह परमार्थ को आगे कर स्वार्थ से लड़े। वह सोचे-ये पौद्गलिक वस्तुएं बिगड़ने वाली हैं, नष्ट होने वाली हैं, उपयोग होगा तो भी बिगड़ेंगी, उपयोग नहीं होगा तो भी बिगड़ेंगी। तब फिर आसक्ति क्यों ? यों सोचकर उनकी चिन्ता से मुक्त बने, अभ्यास करे। असम्भव दीखने वाली बात भी अभ्यास से सम्भव बन जाती है। किसी ने अपनी वस्तु का उपयोग कर लिया तो कर लिया, इसमें बिगड़ा क्या? इस तुच्छ बात को लेकर स्वयं बिगड़ जाए, यह कितना बुरा है। ऐसी स्थिति में वही व्यक्ति आपे से बाहर होता है, जो आसक्त होता है। अहिंसक का पहला लक्षण है-अनासक्ति । वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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