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________________ .:. किसने कहा मन चंचल है प्राणऊर्जा के द्वारा संचालित होती हैं। यदि प्राण की ऊर्जा नहीं है तो फिर या तो मुक्त आत्मा की अवस्था होगी या फिर अचेतन पत्थर की अवस्था होगी। मुक्त आत्मा में प्राण के स्पंदन नहीं होते। उसमें केवल चैतन्य के स्पंदन मात्र होते हैं। अचेतन पत्थर में न चैतन्य के स्पंदन होते हैं और न प्राण के स्पंदन होते हैं। __ बोलना, चलना, देखना, इन्द्रियों का गतिशील होना, मन का गतिशील होना, बुद्धि का क्रियाशील होना-ये सब प्राणऊर्जा के कार्य हैं। इनकी सक्रियता की पृष्ठभूमि में प्राण का प्रवाह कार्य करता है। इन्द्रियां अचेतन हैं । प्राणऊर्जा का योग पाकर वे सचेतन हो जाती हैं। मन अचेतन है । प्राणऊर्जा के प्रवाह से वह भी सचेतन हो जाता है। शरीर अचेतन है। प्राणऊर्जा के प्रवाह से वह सचेतन हो जाता है। प्राणशक्ति का बड़ा स्रोत है-श्वास । श्वास के साथ केवल रासायनिक द्रव्य ही नहीं जाते, प्राणधारा भी जाती है, प्राणशक्ति भी जाती है। जितना गहरा श्वास लेते हैं उतनी ही अधिक प्राणशक्ति जाती है। संकल्प जितना पुष्ट होता है, प्राणशक्ति का प्रवाह भी उतना ही अधिक हो जाता है। जब हम श्वास-दर्शन करते हैं प्राणशक्ति और अधिक बढ़ जाती है। शक्ति के विकास का एक बड़ा सूत्र है-श्वास । जो चमत्कार या प्रदर्शन आज देखने में आते हैं वे सारे श्वास के स्तर पर घटित होने वाले प्रदर्शन हैं, प्राणिक प्रदर्शन हैं । श्वास के आधार पर मोटर या ट्रक को भी छाती पर से निकाला जा सकता है। श्वास का प्रयोग न हो तो सारा शरीर चरमरा जाता है। हड्डियां टूट जाती हैं। श्वास में अथाह शक्ति है। आस्मा की अनन्त शक्ति का एक अंश श्वास के द्वारा प्रदर्शित होता है । आत्मा में अनन्त शक्ति है, अनन्त वीर्य है, यह सच है। श्वास इसे प्रमाणित करता है। श्वास को हम कहां देखते हैं ? हम देखना जानते ही नहीं। हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, उस दुनिया में देखना, जानना जैसा कोई तत्त्व है ही नहीं। वहां केवल है-सोचना, विचारना, तर्क करना। वहां सारा का सारा बौद्धिक व्यायाम है, मन और बुद्धि का कार्य है। सोचो, विचारो, समझो । बस दुनिया समाप्त । यह है हमारी दुनिया । श्वास का स्तर चेतना का निम्नतर स्तर है। यदि यही हम रुक जाते हैं तो चेतना का मूल स्तर बहुत दूर छूट जाता है । आत्मा स्वतंत्र द्रव्य है। स्वतंत्र द्रव्य वह होता है जिसमें कोई विशेष गुण हो । वैसे द्रव्य द्रव्य है ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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