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सत्य की खोज
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से चार हैं । पहला आयाम है-श्वास । दूसरा आयाम है-शरीर । तीसरा आयाम है-मन, चित्त, बुद्धि । चौथा आयाम है-शुद्ध चैतन्य, आत्मा । ये सारे के सारे आयाम सत्य की खोज के आयाम हैं। सत्य को खोजते जाएं।
प्रश्न होता है कि श्वास ऐसा कौन-सा बड़ा सत्य है जिनके लिए हम खोज प्रारंभ करें । श्वास बड़ा सत्य है। श्वास भीतर जाता है । उसके साथ अनेक द्रव्य भीतर जाते हैं। प्राणतत्त्व भी भीतर जाता है। जिस किसी ने प्राण की साधना की है, वह जानता है कि श्वास के साथ प्राण की ऊर्जा किस रूप में भीतर जाती है, उसके कितने आकार बनते हैं और वे आकार निरंतर आंख के सामने घूमते रहते हैं। आंख खुली होती है तब भी दिखाई देते हैं और आंख बंद होती है तब भी दिखाई देते हैं ।
___बहुत वर्षों से मन में एक प्रश्न उठता था कि ओंकार को इतना महत्त्व क्यों दिया गया ? साधकों ने उसे ईश्वर का प्रतिरूप माना। यह क्यों ? अनेक ग्रन्थ देखे, पढ़े । हमारे मन में एक ग्रन्थि है, वहीं तक ग्रन्थों की बात समझ में आती है । वह बात ग्रन्थि को पार कर आगे नहीं जाती। ग्रन्थों के आधार पर यह बात समझ में आयी कि ओंकार शक्तिशाली बीजमंत्र है। इसमें अपूर्व शक्ति है। इसकी ध्वनि से अमुक-अमुक परिणाम आते हैं । यह सब कुछ जान लिया। किन्तु जो बात समझ में आनी चाहिए थी, वह ग्रन्थों में कहीं नहीं मिली। अभ्यास करते-करते वह बात स्पष्ट होती गई । अनुभव से वह प्रत्यक्ष होती गई। जब व्यक्ति प्राण की साधना में चलता है तब आकाश मंडल में व्याप्त प्राण के परमाणु आकार लेना शुरू करते हैं । वे इतने आकारों में सामने आते हैं कि उनकी गणना नहीं की जा सकती । आकार बदलते रहते हैं । बदलते-बदलते जो अंतिम आकार होता है वह ओंकार की प्रतिकृति होता है । प्राणधारा का यह आकार साधक के सामने अभिव्यक्त होता है। यह मैं ग्रन्थ की बात नहीं कर रहा हूं। यह मेरे अनुभव की बात है।
ओंकार प्राणशक्ति का विशेष रूप है । जब प्राणशक्ति का पूरा विकास होता है और जब वह हमारे भीतर प्रवेश करती है तब ओंकार का रूप धारणा कर लेती है। प्राणधारा का विशेष आकार या संस्थान या संस्थान है- ओंकर । इसीलिए इसे इतना महत्त्व दिया गया है ।
हमारे जीवन का समूचा क्रम, हमारी सारी प्रवृत्तियां प्राणशक्ति या
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