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________________ सत्य की खोज प्रेक्षा-ध्यान की उपसंपदा स्वीकार करने वाला साधक प्रतिज्ञा करता है-'सच्चव्वतं उवसपज्जामि'-सत्य का व्रत स्वीकार करता हूं। ध्यान का सारा प्रयोजन है--सत्य की खोज । जो व्यक्ति ध्यान नहीं करता वह सत्य की खोज की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता । हमारे चारों ओर इतने सत्य हैं, इतने सुक्ष्म सत्य हैं, जिन्हें स्थूलदृष्टि से नहीं देखा जा सकता। उन्हें स्थूल मन से भी नहीं पकड़ा जा सकता । वे स्थूल चेतना के विषय नहीं बनते। उन्हें जानने-देखने के लिए सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता है, सूक्ष्म मन की आवश्यकता है और सूक्ष्म चेतना की आवश्यकता है। ध्यान के बिना दृष्टि को सूक्ष्म नहीं किया जा सकता, मन को पटु और सूक्ष्म नहीं बनाया जा सकता । ध्यान के बिना चेतना भी सूक्ष्म नहीं बन सकती। चेतना पर राग-द्वेष और मल के आवरण जमे हुए हैं। वे जब तक नहीं टूटते तब तक चेतना में सूक्ष्मता नहीं आ सकती। इसलिए ध्यान की साधना करने वाला सबसे पहले सत्य की खोज करता है और वह सत्य की खोज अपने से ही प्रारम्भ करता है । वह सत्य को बाहर नहीं खोजता, अपने में ही खोजता है। हम सबसे पहले श्वास की प्रेक्षा करते हैं, श्वास को देखते हैं। हमारे जीवन का पहला तत्त्व है-श्वास । हम श्वास से जी रहे हैं इसलिए सबसे पहले हमारी सत्य की खोज श्वास से ही प्रारम्भ हो रही है । हम शरीर में जी रहे हैं, इसलिए हमारी सत्य की खोज का दूसरा विषय बनता है शरीर, शरीरप्रेक्षा। हमारी जीवन-यात्रा मन से चलती है, विचार से चलती है, विकल्प से चलती है, चिन्तन से चलती है । हम विचार की प्रेक्षा करते हैं, मन की प्रेक्षा करते हैं, विकल्पों की प्रेक्षा करते हैं, चिन्तन की प्रेक्षा करते हैं। हमारे अस्तित्व के मूल में है-चैतन्य। यह सब चैतन्य के द्वारा चलता है । चैतन्य के द्वारा मन चलता है, शरीर चलता है और श्वास चलता है। सबके मूल में है-चैतन्य । इसलिए हम चैतन्य की प्रेक्षा करते हैं । हमारे सत्य की खोज के आयाम आगे से आगे बढ़ते जाते हैं। वे मुख्य रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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