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________________ प्रवचन संकलिका • आयकदसी न करेई पावं [आयारो, ३१३३] • समत्तदंसी न करेई पावं [आयारो, ३१२८] जे अण्णवंसी, से अणण्णारामे । जे अणण्णारामे, से अणण्णदंसी। [आयारो, २११७३[ ० जो हिंसा आदि में आतंक देखता है, वह पाप नहीं करता। ० जो समत्वदर्शी है, वह पाप नहीं करता। ० जो अनन्य को देखता है, वह अनन्य में रमण करता है । जो अनन्य में रमण करता है, वह अनन्य को देखता है । खोज अपने से ही प्रारम्भ करें, जीवन से ही प्रारम्भ करें। श्वास से जी रहे हैं, शरीर में जी रहे हैं, मन और चित्त से यात्रा चल रही है, चैतन्य से प्रकाश मिल रहा है। बंद, खुली या अधमुंदी आंखों से देखें--नासाग्र पर, वस्तु परस्पंदन। उपलब्ध होंगे------ ० प्रज्ञा, ० द्रष्टाभाव, ० साक्षित्व, ० साम्य, ० माध्यस्थ । क्या देखें?-- ० क्रोधदर्शी-क्रोध को देखें । ० आतंकदर्शी --विपाक को देखें। ० समत्वदर्शी साम्य को देखें। ० अनन्यदर्शो-केवल आत्मा को देखें। • परमदर्शी-केवल परम को देखें । • नैष्कर्म्यदर्शी--अकर्म को देखें। ० लोकदर्शी--शरीर को देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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