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आध्यात्मिक सुख
उपशम । क्रोध है तो उपशम के स्पंदन पैदा करो। मृदुता । मान है तो मृदुता के स्पंदन पैदा करो। ऋजुता । माया है तो ऋजुता के स्पंदन पैदा करो। संतोष | लोभ है तो संतोष के स्पंदन पैदा करो प्रतिपादन है । इस 'प्रतिपक्ष' संवेदन के द्वारा किया जा सकता है ।
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किसी को मोह हो रहा है, शोक हो रहा है, विषाद हो रहा है, एकत्व की अनुप्रेक्षा करो, एकत्व के स्पंदन पैदा करो, मोह के स्पंदन समाप्त हो जाएंगे ।
एक स्त्री थी । उसका नाम था 'अतुंकारीभट्टा' । उसमें क्रोध के इतने स्पंदन होते कि सर्पिणी से भी वह अधिक फुफकारती । उसने उपशम की बात को समझा । उसका क्रोध शांत हो गया । क्रोध का प्रतिपक्ष है उपशम । उपशम के स्पंदन क्रोध के स्पंदनों को नष्ट कर देते हैं ।
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मान का प्रतिपक्षी हैमाया का प्रतिपक्षी
लोभ का प्रतिपक्षी
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यह उपदेश नहीं, सत्य का 'पक्ष' के संवेदनों को नष्ट
एक जिज्ञासा हो सकती है कि प्रतिपक्ष की भावना से 'पक्ष' के स्पंदन नष्ट हो जाते हैं तब हम खाने का कष्ट ही क्यों करें ? जब भूख के स्पंदन होने लगें तब हम भोजन के स्पंदनों का अनुभव करें, भूख शांत हो जाएगी । क्या ऐसा हो सकता है ? इसे हमें समझना है । प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग जीव-विपाकी स्थितियों में ही किया जा सकता है | कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव केवल पुद्गल पर ही होता है, हमारे शरीर पर ही होता है । कुछ स्पंदन ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव चैतन्य पर भी होता है । मूर्च्छा के या मोह के जितने स्पंदन हैं- ये सारे जीव-विपाकी हैं। इनका प्रभाव हमारे चैतन्य पर होता है । शुभ-अशुभ वेदनीय का प्रभाव पुद्गलों पर होता है । भूख को प्रतिसंवेदी स्पंदनों के द्वारा नहीं मिटाया जा सकता । किन्तु मूर्च्छा के स्पंदनों को प्रतिसंवेदी स्पंदनों के द्वारा मिटाया जा सकता है ।
प्रतिपक्षी स्पंदनों को उत्पन्न करने की बात अध्यात्मशास्त्र में विकसित हुई जो भी स्पंदन हों, उन्हें देखो जानो । विपाक-विचय करो | देखोजानो । तत्काल प्रतिपक्षी स्पंदन शुरू करो । विषाद, घृणा शोक, क्रोध — ये सारे समाप्त हो जाएंगे ।
किसी में वासना के स्पंदन, काम के स्पंदन होते हैं । काम के स्पंदनों को समाप्त करने के लिए प्रतिपक्षी स्पंदन पैदा करने हैं। एक हैं 'पररसी' स्पंदन और एक हैं 'आत्मरसी' स्पंदन | एक है- विषय - रमण और
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