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किसने कहा मन चंचल है
का मार्ग जो विकसित हुआ उसके पीछे भी स्पंदनों का ही सिद्धांत काम करता है। कहा जाता है-अमुक प्रकार की ध्वनि करो, अमुक प्रकार के स्पंदन पैदा करो। उच्चारण सहित जप करो, मंद जप करो, मौन जप करो, मानसिक जप करो और सूक्ष्म में जाकर प्राण का जप करो। यह स्पंदनों के उत्पादन का ही सिद्धांत है। मंत्र का सिद्धांत भी ध्वनि का सिद्धांत है, स्पंदनों का सिद्धांत है। मंत्र की रचना करने वाले जानते थे कि किस प्रकार की ध्वनि से किस प्रकार के स्पंदन पैदा होते हैं और उनका क्या प्रभाव होता है। ध्वनियों के विविध स्पंदनों के आधार पर ही समूचा मंत्र-शास्त्र विकसित हुआ । सैकड़ों ग्रंथ मंत्र-शास्त्र पर लिखे गए । ऐसी कोई भी व्याधि, चाहे फिर वह शारीरिक हो या मानसिक, नहीं है, जिसके उपशमन के लिए कोई न कोई मंत्र निर्दिष्ट न किया हो । मंत्र के द्वारा चिकित्सा की जाती है। मंत्र के द्वारा शक्ति का विकास किया जाता है। मंत्र के द्वारा धन की प्राप्ति की जाती है। मंत्र के द्वारा अनिष्ट का निवारण किया जाता है। सुख-दुःख, लाभ-अलाभ-सबमें मंत्र का प्रयोग किया जाता है।
ध्वनि स्पंदन पैदा करती है और वे नाना प्रकार के स्पंदन नाना प्रकार की अवस्थाएं पैदा करते हैं ।
अनुभव भी स्पंदन पैदा करते हैं । हम किसी अनुभव में जाते हैं । एक विशिष्ट प्रकार के स्पंदन प्रारंभ हो जाते हैं।
ध्यान भी स्पंदन पैदा करता है।
जितने आस्रव, उतने ही संवर । जितने बंध के प्रकार उतने ही मोक्ष के प्रकार । जितनी बीमारियां उतनी ही औषधियां । इसी प्रकार स्पंदन की उत्पत्ति के भी अनेक निमित्त हैं। जितने निमित्त, उतने ही प्रकार के स्पंदन । इसीलिए भक्तिमार्ग भी चल रहा है। श्रद्धामार्ग भी चल रहा है; ज्ञान और क्रियामार्ग भी चल रहा है। किसी भी मार्ग पर चलें। अमुक-अमुक प्रकार के स्पंदन पैदा करें और अमुक-अमुक प्रकार के स्पंदनों को रोक दें, काम बन जाएगा।
अध्यात्म के क्षेत्र में जब स्पंदनों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया तो अनेक स्थापनाएं हुईं। एक स्थापना हुई-प्रतिपक्ष भावना की। स्पंदन पैदा करने का और सूक्ष्म स्तर तक पहुंचने का एक मार्ग है-भावना। भावना का अर्थ है-वैसा हो जाना, ध्येय के अनुरूप हो जाना। प्रतिपक्ष स्पंदनों से बहुत सारी बातें घटित हो जाती हैं। क्रोध का प्रतिपक्षी है
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