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ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा
होता। जब तक विस्फोट की शक्ति नहीं होती तब तक कोई भी क्रांति घटित नहीं होती। क्रांतिकारी कार्य के संपादन के लिए विस्फोट की जरूरत होती है । विस्फोट के लिए ऊर्जा भंडार की आवश्यकता होती है । ऊर्जा का संचय करें। ऊर्जा का व्यय कम करें। ऊर्जा का विस्फोट करें। ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करें।
तपस्या का पहला प्रकार है-अनशन, भूखे रहना। भूखे रहने से ऊर्जा अधिक उत्पन्न होती है। भोजन करने से भी ऊर्जा उत्पन्न होती है। किन्तु वह ऊर्जा केवल हमारे शरीर-यंत्र का संचालन मात्र कर सकती है। वह ऊर्जा कोशिकाओं को सक्रिय बना देती है। किन्तु चेतना के क्षेत्र में विस्फोट करने के लिए वह ऊर्जा पर्याप्त नहीं है। उससे विस्फोट संपन्न नहीं होता। विस्फोट के लिए सूक्ष्म ऊर्जा अपेक्षित होती है। यह तपस्या और भावना के द्वारा उत्पन्न होती है। वह सूक्ष्म प्रयोगों के द्वारा उत्पन्न होती है । वह अन्न खाने से पैदा नहीं होती। तपस्या में भी यदि पानी नहीं लिया जाता तो अधिक ऊर्जा पैदा होती है। गर्मी को सहने से और अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। ऊर्जा को उत्पन्न करने, ऊपर ले जाने, उसका व्यय कम करने का उपाय है-प्रवृत्ति कम करो, स्थिर अधिक रहो। जितनी प्रवृत्ति होती है, ऊर्जा का व्यय भी उतना ही होता है। यह केवल आध्यात्मिक जगत् की ही बात नहीं है । शरीरशास्त्री भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हैं । प्रवृत्ति अधिक, ऊर्जा का व्यय अधिक । प्रवृत्ति कम, ऊर्जा का व्यय कम । चिकित्सक विश्राम का सुझाव देते हैं, उसके पीछे भी यही दृष्टिकोण है। विश्राम करने से शक्ति का व्यय कम होता है । ऊर्जा एकत्रित होती है।
कायिक प्रवृत्ति करते हैं तो ऊर्जा का व्यय होता है, इसलिए कहा गया है-कायगुप्ति करो।
वाचिक प्रवृत्ति करते हैं, बोलते हैं तो ऊर्जा का व्यय होता है, इसलिए कहा गया-वाक्गुप्ति करो।
सोचते हैं तो ऊर्जा का और अधिक व्यय होता है, इसलिए कहा गया-मनोगुप्ति करो, निर्विचार रहो।
___ अध्यात्म के क्षेत्र में ऊर्जा के व्यय को कम करने के ये उपाय निर्दिष्ट हैं। गुप्तियों के द्वारा ऊर्जा का उत्पादन अधिक होता है, गुप्ति करो। ऊर्जा की आय अधिक होती है, व्यय कम होगा।
ऊर्जा को ऊपर कैसे ले जाया जा सकता है, यह एक प्रश्न है। बैठने
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