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ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा
आत्मा एक ज्योतिपुंज है । एक बहिन ने पूछा-'यदि वह ज्योतिपुंज है तो उसका वर्ण कैसा है ?
___आत्मा एक ज्योतिपुंज है । एक भाई ने पूछा-'यदि वह ज्योतिपुंज है तो दीये की भांति दिखाई क्यों नहीं देता ?'
आत्मा ज्योतिपुंज है तो उसका कोई वर्ण होना चाहिए। आत्मा ज्योतिपुंज है तो वह जलते हुए दीपक की भांति दिखाई देना चाहिए । किन्तु न उसमें कोई वर्ण है और न वह जलता हुआ दिखाई देता है।।
एक आदमी कमरे में गया। अन्दर बिजली जल रही थी। कुछ ही क्षणों के पश्चात् बिजली चली गई। अंधेरा छा गया। कुछ भी नहीं सूझ रहा था। कोई भी वस्तु दिखाई नहीं दे रही थी। बाहर खड़े एक आदमी ने पूछा-'भीतर कौन है ?' उसने कहा-'मैं हूं।'
___'मैं हं'--यह कैसे देखा ? भीतर अंधेरा है। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, फिर 'मैं हूं' यह कैसे जाना ? यदि आत्मा ज्योतिपुंज नहीं है तो कैसे दिखा कि मैं हूं। यदि आत्मा ज्योतिपुंज नहीं है, दीपक की भांति ज्योतिर्मय नहीं है तो कैसे दिखा कि 'मैं हूं'। कितना ही सघन अंधकार हो, व्यक्ति चाहे भूगृह में खड़ा हो, किन्तु 'मैं हूं'-यह दीप कभी नहीं बुझता । यह सदा जलता रहता है । 'मैं हूं'-इतना-सा प्रकाश पर्याप्त है यह समझने के लिए कि भीतर कोई ज्योतिपुंज है। यह प्रकाश की एक किरण पर्याप्त है। यदि हमारी यात्रा ज्योतिपुंज की दिशा में चले, हमारे प्राण की सारी ऊर्जा उसी ओर प्रवाहित हो तो एक न एक दिन उस ज्योतिपुंज का साक्षात्कार अवश्य होगा । उसमें चाहे वर्ण हो या न हो ज्वलनशीलता हो या न हो, वह साक्षात् होगा।
वह आज साक्षात् नहीं है, फिर भी उसके प्रति हम संशयशील नहीं हैं। उसकी कुछ रश्मियां हमें दीख रही हैं । पूरा ज्योतिपुंज आंखों के सामने नहीं है, किन्तु उसकी कुछ रश्मियों से हम अवगत हैं। उन कुछेक रश्मियों के आधार पर हम यह सहज अनुमान कर सकते हैं कि ज्योतिपुंज है। जिस
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