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________________ ऊर्जा का विकास : तप हो रहे हैं। सूक्ष्म शरीर बहुत बड़ा जंगल है। साधक को उस जंगल में प्रवेश कर उन स्पंदनों और संवेदनों को पकड़ना होगा। यदि मन को हम इतना सूक्ष्म, इतना पटु और इतना संवेदनशील बना सकें तो फिर सूक्ष्म शरीर की दीवार को भेद कर आगे बढ़ा जा सकता है। वहां पहुंचकर साधक अनुभव करेगा कि यह रहा ज्ञाता-द्रष्टा। वहां कोई संशय नहीं, कोई विपर्यय नहीं, कोई अस्पष्टता नहीं, कोई व्यवधान नहीं। वहां ज्योतिपुंज के दर्शन होंगे । चैतन्य का लहराता हुआ समुद्र आंखों के सामने नाचने लगेगा। ज्ञाता-द्रष्टा का साक्षात्कार होगा। साधक पहले चरण में कहेगा-मैं ज्ञाता-द्रष्टाभाव का साक्षात् करने के लिए यात्रापथ पर चला हूं।' जब वह मंजिल तक पहुंच जाएगा, तब वह कहेगा---'मैंने ज्ञाता-द्रष्टाभाव का साक्षात् कर लिया। किन्तु इतनी दूरी तय करने के लिए अनेक अनुभवों से गुजरना पड़ता है। जब कोई इस यात्रापथ पर चलना प्रारंभ करता है तब उसे धुंधला-सा अनुभव होता है। किन्तु जब वह आगे बढ़ता है तब अनुभव स्पष्ट होता जाता है। वह उस स्थिति पर पहुंच जाता है जहां अस्पष्टता दूर, परोक्षता दूर, धुंधलापन दूर। वहां अनुभव करने वाला और अनुभाव्य-दो नहीं रहते। एक हो जाते हैं। उस दूरी तक पहुंचने के लिए हम ज्ञाता और द्रष्टा का अनुभव लेकर चलें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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