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ध्यान नहीं है । यही होना चाहिए ।'
मैंने कहा - " बात ठीक है । आत्म-दर्शन तक पहुंचना हमें इष्ट है । किन्तु यह यात्रापथ कुछेक घुमावों से गुजरता है । एकसाथ इस मंजिल तक नहीं पहुंचा जाता । हमें क्रमशः पहुंचना होता है । जो साधक आज प्रथम कक्षा में है, जो आज ही चले हैं, यात्रापथ पर पहला ही कदम उठाया है, वे ज्ञाता द्रष्टा आत्मा की एकसाथ झलक कैसे पा सकते हैं ? उन्हें हम कहें कि अपने शरीर के भीतर ज्ञाता और द्रष्टा को देखें, ज्योतिपुंज को देखें, चैतन्य के लहराते समुद्र को देखें, तो वे कहेंगे कि शरीर के भीतर देखा, वहां चमड़ी है, चमड़ी के भीतर हड्डियां हैं, खून है, मेदा है, मज्जा है । न कोई ज्ञाता है और न कोई द्रष्टा । न कोई ज्योतिपुंज है और न कोई चैतन्य का लहराता समुद्र । सब व्यर्थ हैं । वे निराश हो जाएंगे। हम उन साधकों को शनैः-शनैः बढ़ने दें । प्रत्येक स्तर से गुजरने दें। पहले वे स्थूल संवेदनों को पकड़ें | जब वे उन्हें पकड़ लें तब शरीर की गहराई में जाकर सूक्ष्म संवेदनों को पकड़ें । स्थूल शरीर को पार करना कठिन है । उसको पार कर जाने पर सूक्ष्म शरीर प्राप्त होता है । वह है तैजस शरीर, आभावलय । उसे देखें । उसकी तरंगों को पकड़ें । विभिन्न वर्णों से निर्मित इस विभिन्न तरंगों को देखें, पकड़ें। फिर आता है अंतिम सूक्ष्म शरीर - कर्मशरीर । कर्मपरमाणुओं के विपाकरूप स्पंदनों को पकड़ें। वहीं से सब कुछ बाहर आता है । जो बाहर में घटित हो रहा है वह मात्र प्रतिबिंब है । सारा का सारा मूल कर्म शरीर में घटित होता है। सूक्ष्म शरीर में घटित होने वाली घटनाओं के आधार पर ही मृत्यु की घोषणा वर्षों पहले की जा सकती है। बीमारी की सूचना वर्षों पहले दी जा सकती है । आज का विज्ञान भी इस ओर अनुसंधान कर रहा है और उसे इस दिशा में काफी सफलता भी मिली है ।
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आभावलय की
किसने कहा मन चंचल है
आज जो बीमारी स्थूल शरीर में दीख रही है, वह सूक्ष्म शरीर में पहले ही घटित हो चुकी होती है। वहां से स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होने में उसे काफी समय लग जाता । मृत्यु की घटना सूक्ष्म शरीर में घटित हो रही है । बाहर आने में उसे समय लग सकता है । आज इतने सूक्ष्म यंत्र विकसित हो चुके हैं कि सूक्ष्म शरीर में घटित होने वाली मृत्यु, बीमारी आदि के फोटो लिए जा सकते हैं ।
सूक्ष्म शरीर में न जाने कितने स्पंदन, कितने संवेदन, कितने विपाक
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