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प्रवचन ५
। संकलिका
• जुद्धारिहं खलु दुल्लहं । [आयारो, ५।४६]
० युद्ध के योग्य सामग्री निश्चित ही दुर्लभ है। • अध्यात्म साधक को संघर्ष का सामना करना होता है। • विवेक-चेतना जागने पर वह ज्ञाता-द्रष्टाभाव की ओर जाने के लिए
प्रत्याख्यान करता है। • उपादेय की प्रतिमा सामने होती है तब हेय पीछा नहीं करता। • उपादेय को उपलब्ध होने पर वह संयत, जागृत और शान्त रहना
चाहता है, तब आस्रव (वृत्तियां) युद्ध छेड़ देते हैं । उनसे निपटने के लिए अनेक साधनों का उपयोग आवश्यक है। अध्यात्म की साधना, पूरी की पूरी भेद-विज्ञान की साधना, आयोग की साधना है० शरीर और आत्मा का भेद । ० इच्छा और आत्मा का भेद । ० मूर्छा और आत्मा का भेद । ० आवेग और आत्मा का भेद ।
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