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व्यक्तित्व का रूपान्तरण : समता
पाता । जैसे-जैसे चाक घूमता है वैसे-वैसे वह मिट्टी का पिण्ड अपने पिण्ड को छोड़कर दूसरे आकार में बदलना शुरू हो जाता है। यदि वह रूपान्तरण नहीं होता है तो साधना करने वाले के लिए भी प्रश्न होता है और दूसरों के लिए भी प्रश्न होता है । स्वयं को तो महसूस होना ही चाहिए कि साधना से रूपान्तरण प्रारम्भ हो गया है। दूसरे उसे माने या न मानें, कोई महत्त्व की बात नहीं है। ग्राहक घड़ा चाहता है, मिट्टी का पिण्ड नहीं । घड़ा प्राप्त नहीं होता तब तक उसे विश्वास नहीं होता। मिट्टी के पिण्ड में न पानी रखा जा सकता है और न अनाज । मिट्टी का पिण्ड जब पूरा रूपान्तरित होकर घड़ा बन जाता है तब वह पानी भी टिका पाता है और अनाज भी टिका पाता है।
व्यक्तित्व का रूपान्तरण साधना की निष्पित्ति है।
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