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प्रवचन ३ : संकलिका
अप्रमाद - सुखानुभूति की निरन्तरता । अखण्ड ज्योति ।
समता - सुखानुभूति के शिखर पर । ज्योतिर्मयः ज्ञान ज्ञान में
प्रतिष्ठित ।
• पूर्व कर्म का प्रतिक्रमण उत्तर कर्म का प्रत्याख्यान
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चरित्र
वर्तमान कर्म विपाक की आलोचना - भेदानुभव |
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