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________________ 'प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास : संयम २५ सकती है, किन्तु यह सार्वभौम, सार्वकालिक हो, यह बात समझ में नहीं आती। ऐसा होना भी नहीं चाहिए । हमारा यह तप जड़ता की ओर न बढ़े। चेतना का तप चलता रहे । हम इन्द्रियों का उपयोग करें, मन का उपयोग करें और नाड़ी-संस्थान को इतना स्वस्थ रखें जिससे कि हमारा मस्तिष्क हमारा सहयोग कर सके। ___बहुत सारे लोग अज्ञानवश ऐसी क्रियाएं कर लेते हैं जिनसे उन्हें भारी हानि होती है। वे तपस्या के नाम पर तथाकथित तपस्या करते हैं। उनका नाड़ी-संस्थान इतना दुर्बल और क्षीण हो जाता है कि वह तपस्या उनको विकास की ओर नहीं ले जाती, ह्रास की ओर ले जाती है। (तपस्या का अर्थ है-प्राणशक्ति का विकास । यदि प्राणशक्ति का विकास, ऊर्जा का विकास नहीं होगा तो चैतन्य का विकास कैसे होगा? तपस्या इसलिए की जाती थी कि प्राणशक्ति का विकास हो, ऊर्जा का विकास हो। किन्तु तपस्या का अर्थ समझा गया कि शक्ति कम हो, शरीर क्षीण हो । यह बहुत बड़ी भ्रांति है। इसे हम निकालें । हम इस बात पर : ध्यान केन्द्रित करें कि शक्ति का ह्रास जिससे हो, वह धर्म का कार्य नहीं हो सकता। हम शक्ति के केंद्रों को बंद नहीं करेंगे, वातायनों को खुला रखेंगे। किन्तु यह सबसे बड़ी कठिनाई है कि जब निमित्त हैं तो उनके दोषों को कैसे रोका जा सकता है । इनसे बचने का उपाय क्या है ? इनसे बचने का उपाय है-उपादान की सिद्धि । मनुष्य यांत्रिक जीवन जी रहा है। कम्प्यूटर के आविष्कार के बाद यह सिद्ध हो गया कि मनुष्य यांत्रिक है। जो कुछ मनुष्य करता है, कर सकता है, वह सब कुछ कम्प्यूटर करता है। वह कविता बनाता है, प्रश्न करता है, प्रश्न के समाधान प्रस्तुत करता है, गणित के जटिलतम प्रश्न हल करता है, अभिवादन करता है, स्मृति रखता है, अनागत की कल्पना करता है, सोचता है, मीमांसा करता है, विश्लेषण करता है, विवेक करता है, सब कुछ करता है जो मनुष्य करता है। फिर प्रश्न उठा कि मनुष्य और यंत्र में अन्तर क्या है ? भेदरेखा क्या है ? मनुष्य आत्मवान् है, यंत्र आत्मवान् नहीं है ? प्राणी और अप्राणी के बीच की यह भेदरेखा है। किन्तु जब महावीर से पूछा गया "क्या आत्मा श्वास लेती है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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