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________________ २४ किसने कहा मन चंचल है है फिर वह प्रत्याख्यान से टल नहीं सकता । मादक वस्तुओं का सेवन करने करने वाले जानते हैं कि मादक वस्तुओं का सेवन अच्छा नहीं है । वे नहीं चाहते कि मदिरा पी जाए, किन्तु जब समय आता है तब उनकी सारी नाड़ियां व्याकुल हो जाती हैं। मांग इतनी प्रबल हो जाती है कि न पीने की बात नीचे दब जाती है और वह नाड़ी संस्थान विवश करता है उसे पीने के लिए । नाड़ी संस्थान बहुत बड़ा निमित्त है । संयम की साधना में एक कठिहै बाहर के निमित्तों की ओर दूसरी कठिनाई है स्नायु संस्थान की । सब कुछ यही नहीं है । परिस्थितिवाद के विचारक और निमित्तवादी विचारक सारा का सारा दोष निमित्तों पर डालते हैं, परिस्थितियों पर डालते हैं । जैसी परिस्थिति, जैसा वातावरण, वैसा परिणाम । ये इनसे आगे नहीं जाते । यहीं इनकी कथा समाप्त हो जाती है । उनके सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न यह है fe after के केन्द्रों का नियामक कौन तत्त्व है ? कोई कहते हैं कि हमारा नाड़ी संस्थान मस्तिष्क के केन्द्रों का नियमन करता है । किन्तु यह कोई समा धान नहीं है । शरीर का नाड़ी संस्थान और मस्तिष्क का नाड़ी संस्थान जितने केंद्रों का नियंत्रण करता है उसका मूल कारण, उपादान कारण, मस्तिष्क में नहीं है, किन्तु वह है सूक्ष्म शरीर में और सूक्ष्म शरीर में उपादान आता है आत्मा से । हम निमित्तों से बचें । प्रत्याख्यान के बाद हम जागरूक रहें कि ऐसी कोई भी प्रवृत्ति न हो जो कि आदत बन जाए। हम पूर्ण जागरूक और सचेत रहें । यह प्रत्याख्यान हो गया । किन्तु जब तक उपादान शुद्ध नहीं होगा तब तक भीतर से आने वाला रूप रुकेगा नहीं । आपने आंख बंद की, बाहर का रूप समाप्त हो गया । किन्तु कोई भी आदमी जीवन-भर आंखें बंद कर बैठ नहीं सकता । आंख चैतन्य का वातायन है, झरोखा है । इसमें से छनकर हमारे चैतन्य की रश्मियां बाहर आती हैं । उसे बंद क्यों किया जाए ? हमारे जो स्नायु हैं, वे जो प्रवृत्ति करते हैं उनको बंद क्यों किया जाए ? न इन्द्रिय के वातायन को समाप्त किया जा सकता है और न स्नायु संस्थान को रोका जा सकता है, न मन की गति को सर्वथा रोका जा सकता है । यह निमित्तों से अल्पकाल के लिए बचने की बात समझ में आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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