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प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास : संयम
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पैर में कोटा लगा । हाय उसे निकालने के लिए तत्पर हो जाता है । .. यह क्यों और कैसे होता है ? ज्ञानवाही नाड़ी-मंडल इस बात को ग्रहण कर. मस्तिष्क तक पहुंचाता है और मस्तिष्क हाथ के ज्ञानवाही तंतुओं को आदेश देता है कि कांटे को निकालो। हाथ उस कार्य में तत्पर हो जाता है।
वह समूचा नाड़ी-संस्थान साधना की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। साधक यदि नाड़ी-संस्थान को नहीं समझता है तो वह साधना में सफल नहीं हो सकता।
हम प्रत्याख्यान करते हैं । प्रत्याख्यान का अर्थ है-छोड़ना। इससे संयम हो गया। क्या छोड़ देने मात्र से संयम हो गया ? आपने संकल्प-शक्ति को जागृत कर लिया। आपने संकल्प कर लिया कि आज से मैं वह नहीं करूंगा जो पहले करता था । यह संयम हो गया, किन्तु संकल्प-शक्ति का एक ही काम नहीं है। केवल संयम होना ही पर्याप्त नहीं है। उसकी सिद्धि होनी चाहिए। उसकी सिद्धि के लिए और बहुत कुछ करना होता है। संयम किया, संवर हो गया। अनागत का प्रत्याख्यान किया, वर्तमान का संवर हो गया। किन्तु अनागत का प्रत्याख्यान पुष्ट कैसे हो? क्या केवल संकल्प के सहारे लम्बी यात्रा की जा सकती है ? संकल्प से दरवाजे तो बंद हो गए, किन्तु भीतर जो कूड़ा-करकट जमा हुआ था, उसे निकालना भी आवश्यक होता है। उसे निकालने की प्रक्रिया के दो रूप हैं। एक है निमित्तों से सम्बन्धित और दूसरी है उत्पादन से सम्बन्धित ।
___ संयम की साधना प्रारंभ कर दी। निमित्त आते हैं और मन को आंदोलित कर देते हैं। कोई गाली आती है, मन आंदोलित हो जाता है। कोई प्रशंसा आती है, मन आंदोलित हो जाता है। कोई शब्द, रूप, रस और गंध आती है, मन आंदोलित हो जाता है। संयम को धक्का लगने लगता है । क्या हम निमित्तों से बच सकते हैं ? संयम की साधना में एक अभ्यास चालू किया गया कि निमित्तों से बचो, विषयों का प्रत्याख्यान करो, विषयों से बचो। ऐसा करना कोई कठिन बात नहीं है, साधारण बात है।
बच्चा ऊधम मचा रहा है। मां ने उसे चांटा मारा। चांटा मारते ही मां के स्नायु-संस्थान में आवेश का अंकन हो जाता है। अब वह संस्कार बन जाता है। जब भी ऐसा प्रसंग आता है, न चाहते हुए भी हाथ उठ जाता है।
निमित्तों का बड़ा महत्त्व है । नाड़ी-संस्थान जिस बात को पकड़ लेता
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