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________________ चेतना का प्रस्थान : अज्ञात की दिशा ३०१ देखने वाला साधक, शरीर के कण-कण में चैतन्य का अनुभव करने वाला साधक समता की स्थिति में चला जाता है। जब जीवन में समता घटित होती है तब सारा आचरण बदल जाता है, संबंधों के प्रकार बदल जाते हैं । सब आचरणों में परम आचरण है- - समता । जिस व्यक्ति के आचरण में समता और व्यवहार में मृदुता आ जाती है उसके सारे सम्बन्ध सुधर जाते हैं । । मानवीय सम्बन्धों में सबसे कड़ी कठिनाई है -- विषमता और कठोरता | पहली कठिनाई है- विषमता पिता की दृष्टि पुत्रों के प्रति सम नहीं होती, माता की दृष्टि पुत्रियों के प्रति सम नहीं होती, तब संबंधों में विकृति आने लग जाती है। सामाजिक व्यवस्था में जहां-जहां विषमता है, वहां-वहां उपद्रवों का होना अनिवार्य है और उपद्रव न हो तो मानना चाहिए कि विषमता में जीने वाले अज्ञानी लोग हैं। जहां सामाजिक स्थिति विषमतापूर्ण हो, उस सामाजिक स्थिति में सताए जाने वाले लोग विद्रोह न करें तो मानना चाहिए कि ये मूच्छित हैं, सोए हुए हैं तो विषमता के प्रति विद्रोह की आग न भभके, यह कभी नहीं हो सकता । विषमता के प्रति विद्रोह होना स्वाभाविक है और विद्रोह न हो तो एक बहुत बड़ा आश्चर्य है । दो बहनें साथ चलें और बात न करें तो यह आश्चर्य: हो सकता है, बात करना कोई आश्चर्य नहीं है । । यदि लोग जागे हुए हों आचरण की, व्यवहार की, मानवीय सम्बन्धों की सबसे बड़ी समस्या है विषमता की । विषमता यदि परिवार में हो तो परिवार सुखी नहीं हो सकता । विषमता यदि समाज में हो तो समाज सुखी नहीं हो सकता । मानवीय सम्बन्धों की दूसरी कठिनाई है— कठोरता । आदमी अपने से छोटे व्यक्ति के साथ मृदु व्यवहार नहीं करता । अपने से बड़े व्यक्ति के साथ उसे मृदु व्यवहार करना पड़ता है । अन्यथा उसे स्वयं को कठिनाई भोगनी पड़ती है । छोटे के साथ मृदु व्यवहार करने पर बड़े का बड़प्पन ही कैसे सुरक्षित रह सकता है ? यह धारणा रूढ़ हो गई है । एक मालिक अपने नौकर के साथ मृदु व्यवहार करने में कठिनाई का अनुभव करता है । किन्तु बराबर के साथी के साथ वह विनम्र और मृदु व्यवहार करने में गौरव अनुभव करता है । भला नौकर के साथ मृदु व्यवहार कैसे किया जाए ? उसको तो दो-चार गालियां ही दी जानी चाहिए। इस धारणा ने सारे व्यवहार को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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