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किसने कहा मन चंचल है
अव्यवस्थित कर डाला है। आज सर्वत्र यह धारणा ही बन गयी कि छोटे के साथ तो कठोर व्यवहार ही करना चाहिए। एक मिल मैनेजर यदि मजदूरों के साथ मृदु व्यवहार करता है तो भला मिल कैसे चल सकेगी? इस प्रकार की धारणाओं ने सामाजिक सम्पर्को, सामाजिक सम्बन्धों और मानवीय सम्बन्धों में बहुत बड़ी दरार पैदा कर दी। हम इस बात को भूल गए कि मैत्री और प्रेमपूर्ण भावनाओं के द्वारा, निर्मल और पवित्र भावनाओं के द्वारा आदमी को जितना जगाया जा सकता है, जितना प्रेरित किया जा सकता है, उतना कठोर व्यवहार से नहीं किया जा सकता। आज वैज्ञानिक खोजों के द्वारा नयी सचाइयां सामने आयी हैं कि पवित्र और सद्भावनापूर्ण भावनाओं के द्वारा पौधों को विकसित किया जा सकता है। खेती को बढ़ाया जा सकता है। फूलों को और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है । ऐसी स्थिति में पूर्ण चेतनाशील व्यक्ति को निर्मल और सद्भावनापूर्ण चेतना के द्वारा विकसित नहीं किया जा सकता? क्या वह निरा पत्थर है ? पत्थर को भी पवित्र भावनाओं से चैतन्य जैसा किया जा सकता है । जब बड़ी चट्टान को उठाना होता है तब पांच-सात आदमी उस चट्टान के प्रति समर्पित होकर, संकल्पशक्ति के सहारे उसे ऊपर उठा देते हैं।
विनम्रता, मृदुता हर किसी को पिघला देती है । आप किसी के प्रति सद्भावना करें, प्रेमपूर्ण भावना करें वह पिघल जाता है। गाय अधिक दूध देने लग जाती है, वृक्ष अधिक फल-फूल देने लग जाते हैं और लताएं अपनी दिशा बदल देती हैं। एक ईसाई महिला ने एक प्रयोग किया । उसने कुछ पौधे लगाए । किन्तु एक लता उन पर छा जाती, उन पौधों को ढंक देती। पौधों को पनपने का मौका ही नहीं मिलता। एक दिन महिला उस लता के पास गयी और विनम्र स्वर में बोली-“लता ! मुझे दुःख है कि तुझे काटना पड़ेगा। क्योंकि तुम्हारा शरीर बेचारे इस पौधे पर छा जाता है। पौधे को बढ़ने का मौका ही नहीं मिलता । मैं तुझे काटना नहीं चाहती, किन्तु काटना पड़ेगा । मुझे खेद हैं ! तू मुझे क्षमा करना ।" उस महिला ने पौधे पर छा जाने वाले लता के भाग को काट डाला। फिर लता को सुझाव दिया कि तुम अमुक दिशा में बढ़ती जाओ। कुछ दिनों बाद देखा कि उस लता ने अपना मार्ग बदल डाला और दूसरी दिशा में बढ़ना प्रारम्भ कर दिया। जब लता भी विनम्र बात सुन लेती है, पौधा भी सुन लेता है तब आदमी हमारी भावना क्यों नहीं सुनेगा? हमारी मृदुता को वह न समझे, यह कैसे हो
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