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प्रवचन २८
| संकलिका
• विकास का आधार-सत्य की खोज और सत्य का अनुशीलन । • बदलने वाला बदले, न बदलने वाला न बदले । • मन पर जमने वाले मलों का संशोधन । • स्वभाव-परिवर्तन । • मानवीय सम्बन्धों में परिवर्तन । • ऐसे निर्जन द्वीप की खोज जहां शक्ति का व्यय कम हो, नयी शक्ति
का सञ्चय हो । • शक्ति व्यय का हेतु
० निरन्तर गतिशीलता। ० अतिरिक्त प्रवृत्ति। • बुरे कर्म व बुरे विचार ।
० विचार और संवेदन का अनियंत्रण । • शक्ति का उपयोग करें । उपयोग न होने पर वह व्यर्थ है। • शक्ति के उपयोग की सही दिशा
• स्वयं को जान सके, स्वयं को पा सके। • सिद्धि के तीन स्तर
० प्राकृतिक, जैसे परिस्थितियों पर प्रभुत्व पाना । ० चेतना का जागरण । • मूर्छा की समाप्ति । साधना का उद्देश्य• कषाय की शांति । ० चेतना की निर्मलता।
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