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प्रेक्षाध्यान और मानसिक प्रशिक्षण
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एक पौधा है । आप उसके गुण-दोष नहीं जानते । वह अत्यन्त अपरिचित है । आपके मन में जिज्ञासा उठी कि यह क्या है ? इसका स्वभाव क्या है ? इसका वीर्य क्या है ? इसमें कौन-कौन-सी शक्तियां हैं ? आप ध्यान कर बैठ जाएं और उस पौधे के साथ सम्पर्क स्थापित करें, तादात्म्य जोड़ें और फिर उस पौधे से ही पूछे-तुम्हारी प्रकृति क्या है ? तुम्हारा गुण-धर्म क्या है ? तुम्हारी क्रिया क्या है ? आप इतने संवेदनशील बनें, ऐसा गाढ़ सम्बन्ध स्थापित करें, ऐसा अद्वैत स्थापित करें कि वह पौधा आपको सब-कुछ बता दे। सम्पर्क स्थापित होते ही आप उसकी लिपि को समझने लग जाएंगे। उसकी प्रतीक-लिपि को, उसकी सांकेतिक भाषा को आप समझ लेंगे । उसका पूरा लेखा-जोखा सामने आ जाएगा । आपको ऐसा लगेगा कि किसी पुस्तक के पन्ने उलटे जा रहे हैं और सारी बातें सामने प्रकट हो रही हैं ।
प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा जैसे शरीर की पर्यायों को जाना जा सकता है वैसे ही पदार्थ के पर्यायों को भी जाना जा सकता है। अपने तथा पदार्थ के सूक्ष्म पर्यायों को जानने के लिए प्रेक्षा-ध्यान-पद्धति बहुत ही मूल्यवान है। यह दर्शन का नया अध्याय है। इसे इस भाषा में भी कहा जा सकता है कि यह पुरानी कड़ी का नया अनुसंधान होगा। दर्शन को अपनी मूल स्थिति प्राप्त हो जाएगी। मध्ययुग में जो कड़ी टूट गयी थी, उसका अनुसन्धान हो जाएगा।
हम इस ध्यान-साधना के द्वारा दर्शन के नए अध्याय को खोलें, उसके पृष्ठों को लिखें, पढ़ें, भरें तो बहुत सारे प्रश्न समाहित हो जाएंगे । आज दर्शन और धर्म के विषय में जो भी नए प्रश्न उभर रहे हैं, वे बिना तर्क का सहारा लिये स्वतः उत्तरित हो जाएंगे।
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