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________________ २६२ किसने कहा मन चंचल है। पकड़ा नहीं जा सकता। मन भी सहज चंचल है। उसे पकड़ा नहीं जा सकता। हजारों वर्षों से यह प्रश्न चर्चित होता रहा है कि मन को कैसे पकड़ा जाए? मनुष्य उद्यमशील है। उसने अनेक गूढ़ सत्य खोज निकाले हैं। पारा चंचल है, पर आदमी ने उसकी गोलियां बांध दी । अब उसे पकड़ा जा सकता है। पारे की गोली हो सकती है तो मन की गोली क्यों नहीं हो सकती? जब पारा बांधा जा सकता है तो मन को क्यों नहीं बांधा जा सकता ? वह भी बंध सकता है। विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा पारा बंध सकता है । वैसे ही ध्यान की प्रक्रिया के द्वारा मन बांधा जा सकता है। मन को बांधने की एक प्रक्रिया है-एकाग्रता । मन को ऐसा अभ्यस्त करना चाहिए कि वह एक स्थान पर टिक सके, एक ध्येय पर टिक सके । जब मन एक विषय पर तीन घंटा टिक जाता है तब मन की असंख्य शक्तियां जागृत हो जाती हैं। तीन घंटा टिका पाना सहज नहीं है। बहुत अभ्यास और धृति की अपेक्षा होती है। यदि मन एक घंटा भी टिक जाता है तो साधक स्वयं अनुभव कर सकता है कि भीतर कितना विस्फोट हो रहा है। कितनी शक्तियां जाग रही हैं । एक घंटा स्थिर रहना बहुत दूर की बात है, यदि कोई व्यक्ति ५-१० मिनट एक विषय पर स्थिर रह सकता है तो वह अनुभव कर सकता है कि शरीर में शक्ति और उत्साह का नया स्रोत उभर रहा है। __ मन को प्रशिक्षित करने का चौथा सूत्र है-प्रेक्षा का अभ्यास । प्रेक्षा का अर्थ है -- देखना । मन को देखने का अभ्यास करना चाहिए । मन सोचना तो बहुत जानता है। उसे यही सिखाया गया है । मन भी पक्का हो गया। वह निरंतर सोचने में लगा रहता है। हमें उसे इस दिशा में प्रशिक्षित करना है कि वह देख सके। मन में देखने की शक्ति भी है। सोचना और विचारना—यह सतही स्तर की अवस्था है। देखने में बहुत गहराई होती है। जब मन देखने लग जाता है तब सोचने की बात नीचे रह जाती है। कोई भी बात आती है तो देखने की बात मुख्य होगी, सोचने की बात पारिपाश्विक बन जाएगी। हम सोचते हैं, विचारते हैं, उसका हम स्वयं अनुभव नहीं करते और वही बात जब हमारे सामने आती है तब हम विश्वस्त हो जाते हैं। हम मान लेते हैं कि यह बिल्कुल ठीक है। क्योंकि जब हम केवल सोचते हैं, देखते नहीं तब वह बात हमारे प्रत्यक्ष नहीं होती। किन्तु जब हम आंखों से देख लेते है तब कोई संदेह नहीं होता। प्रत्यक्ष का कितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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