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प्रेक्षाध्यान और मानसिक प्रशिक्षण
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विश्वास और भरोसा होता है । व्यवहार में भी कहा जाता है- यह आंखों देखी बात है, केवल कानों सुनी नहीं । जो आंख की दुहाई देता है वह अपनी बात को सर्वोच्च बना देता है। आंखों का अर्थ ही है - प्रत्यक्षीकरण या साक्षात्करण । साक्षात्करण का बहुत बड़ा स्थान है। घटना साक्षात् हो जाए, कष्ट साक्षात् हो जाए, उससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं हो सकता । 'प्रत्यक्षं प्रमाणम्' - सबसे बड़ा प्रमाण है— प्रत्यक्ष । मन को प्रेक्षा का अभ्यास दें । उसे देखना सिखाएं । मन को गहरे में उतार कर देखें। देखने का इतना अभ्यास करें कि सोचने की बात द्वयं हो जाए, प्रथम न रहे । मन का सामान्य अभ्यास यह है कि उसके लिए सोचना प्रथम है और देखना द्वितीय है । प्रशिक्षण के द्वारा इस स्थिति को उल्टा जा सकता है ।
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हम प्रेक्षा का अभ्यास शुरू करते हैं। श्वास के माध्यम से श्वास के साथ मन को जोड़ते हैं या मन से श्वास को देखते हैं; आंख से नहीं देखते । श्वास आंखों से नहीं देखा जाता किन्तु मन से देखा जा सकता है । मन से श्वास को देखते हैं; किन्तु सोचते नहीं । यह देखना भी एकाग्रता का प्रयत्न नहीं है। एकाग्रता तो साथ-साथ सघती है । मूलतः केवल देखने का प्रयत्न है | हम श्वास की प्रेक्षा एकाग्रता के लिए नहीं करते, किन्तु अपने द्रष्टाभाव को विकसित करने के लिए करते हैं । हमारी चेतना का मूल धर्म हैजानना और देखना, ज्ञाताभाव और द्रष्टाभाव । हम श्वास- प्रेक्षा के द्वारा अपने जानने और देखने की मूल प्रकृति का जागरण करते हैं, ज्ञाताभाव और द्रष्टाभाव को विकसित करते हैं । एकाग्रता अपने-आप सघती है । यह गोण बात है, मुख्य बात नहीं है ।
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हम शरीर- प्रेक्षा करते हैं । शरीर के बाहरी भाग को देखते हैं । शरीर के भीतर मन को ले जाकर भीतरी भाग को देखते हैं । शरीर के स्थूल और सूक्ष्म स्पंदनों को देखते हैं । शरीर के भीतर जो कुछ है उसे देखने का प्रयत्न करते हैं । शरीर के भीतर वह सब कुछ है जो इस संसार में है । ऐसा क्या तत्त्व है जो संसार में हो और इस शरीर में न हो । यह शरीर समूचे संसार का प्रतिनिधत्व करता है । हम उस शरीर की प्रेक्षा करते हैं, - मन को देखने का प्रशिक्षण देते हैं । आप यह मानें कि हमारा मन वही है जो मस्तिष्क से सम्बन्ध रखता है । मन भी बहुत भागों में बंटा हुआ है । हमारी चेतना भी बहुत भागों में बंटी हुई है। एक है— इन्द्रिय स्तरीय चेतना और दुसरी है -- कोषस्तरीय चेतना । हमारे शरीर के जितने सेल्स हैं, जितने कोष
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