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मानसिक शक्ति का विकास और उपयोग
२३५.
जिसको आपने भस्म किया है। मैं पतिव्रता नारी हूं। आपकी मन-शक्ति मेरे पर काम नहीं करेगी ।"
मन की अनगिन शक्तियां हैं । एक धनुर्धर था । वह अपने समय का विख्यात धनुर्धर था । उसे अपनी धनुविद्या पर गर्व था । एक व्यक्ति के समक्ष वह अपनी प्रशंसा कर रहा था । उस व्यक्ति ने कहा- "भाई ! तुम प्रसिद्ध धनुर्धर हो । परन्तु मेरे गुरु की तुलना में तुम नहीं आ सकते । वे ऐसे धनुर्धर हैं, जिनकी तुलना कठिन है ।" वह गुरु को देखने गया । धनुविद्या का चमत्कार दिखाने की प्रार्थना की। गुरु उसे एक पहाड़ की चोटी पर लें गया। गुरु ने आकाश को एकटक देखना प्रारंभ किया । आकाश की ऊंचाई पर पक्षियों का एक झुण्ड उड़ रहा था। वह उसकी दृष्टि की रेंज में आ गया । ज्योंही उसकी दृष्टि पक्षियों पर पड़ी, सारे पक्षी जमीन पर आ गिरे । उसने न कोई प्रत्यंचा तानी और न कोई तीर साधा । केवल अनिमेष प्रेक्षा से वह संघ गया । यह थी बिना धनुष और बाण की धनुविद्या । अनिमेष प्रेक्षा से यह सब कुछ हो सकता है । उड़ते पक्षियों को गिराया जा सकता है, चलते वाहनों को रोका जा सकता है ।
ये सब आध्यात्मिक नहीं, केवल मानसिक शक्ति के प्रयोग हैं। आध्यात्मिक व्यक्ति को भी मानसिक शक्ति का जागरण करना होता है । चमत्कार दिखाने वाले व्यक्ति को भी मानसिक शक्ति का जागरण करना होता है । मानसिक शक्ति का जागरण दोनों के लिए नितान्त जरूरी है । मानसिक शक्ति के जागरण के बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता किन्तु दिशाएं भिन्न हो जाती हैं, ध्येय भिन्न हो जाते हैं, किन्तु जागरण की पद्धति में कोई अन्तर नहीं होता। ऐसा नहीं होता कि सदाचारी व्यक्ति के तो मानसिक शक्ति का जागरण हो जाता है और असदाचारी व्यक्ति के वह नहीं होता । जिसका अच्छा ध्येय है उसके मानसिक शक्ति का विकास होता है और जिसका बुरा ध्येय है उसके मानसिक शक्ति का विकास नहीं होता - वह नियम नहीं है । शत्रुओं को नष्ट करने के लिए किसी ने विद्या की साधना की तो वह भी T सिद्ध हो गयी । और किसी ने दूसरों की भलाई या कल्याण के लिए विद्या की साधना की तो वह भी सिद्ध हो गयी । अध्यात्म का मार्ग ही एक ऐसा मार्ग है जहां अपवित्र मन, वचन और कर्म के लिए कोई अवकाश नहीं है । नितान्त निर्मल मन, निर्मल वाक् और निर्मल कर्म ही इस अध्यात्म जगत् की अपेक्षा है । यही इसकी इयत्ता है । अन्य क्षेत्रों में यह नियामकता नहीं है ।
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