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किसने कहा मन चंचल है सकता है कि पदार्थ स्व-प्रतिष्ठित हैं ? व्यवहार के धरातल पर हम कहते हैं कि पदार्थ पृथ्वी पर टिके हुए हैं । निश्चय के धरातल पर कहा जा सकता है कि पदार्थ अपने आधार पर ही टिके हुए हैं । व्यवहार स्थूल होता है । उसका निरूपण स्थूल ही होगा। निश्चय सूक्ष्म की व्याख्या करता है। सूक्ष्म सत्य यह है कि सब पदार्थ स्व-प्रतिष्ठित हैं। कोई किसी पर आधारित नहीं है, कोई किसी पर टिका हुआ नहीं है। गुरुत्वाकर्षण केवल आरोपित है। गुरुत्वाकर्षण समाप्त होते ही कोई किसी पर आधारित नहीं रहेगा। घड़ा घड़ा रहेगा, पानी पानी रहेगा । न घड़े में पानी है और न पानी में घड़ा है । घड़ा अपने अस्तित्व में है और पानी अपने अस्तित्व में है। स्थूलदृष्टि से निरूपण किया जाता है कि घड़े में जल है । घड़ा और पानी दो वस्तुएं हैं । घड़े में पानी है-यह हमारी स्थूलदृष्टि है। व्यवहार नय है । घड़ा अपने स्वरूप में है और पानी अपने स्वरूप में है । गुरुत्वाकर्षण समाप्त होते ही भारीपन समाप्त हो जाता है । फिर आधार की कोई अपेक्षा ही नहीं रहती।
___ मन की शक्ति अभ्यास के द्वारा जागृत होती है । एक है अभ्यास और एक है अभ्यास की पद्धति । अभ्यास की पद्धति प्राप्त हो जाए और बार-बार अभ्यास किया जाए तो उस दिशा में विकास हो जाता है । अभ्यास की हजारों पद्धतियां हैं जिनसे मन को शिक्षित किया जा सकता है। मन के द्वारा हजारों-हजारों काम किए जा सकते हैं । एक ही व्यक्ति सब पद्धतियां साधे यह संभव नहीं है । एक दिशा में अभ्यास किया जा सकता है। एक व्यक्ति ने सोचा कि मैं एक अभ्यास पर बिजली को जलाने और बुझाने की शक्ति प्राप्त कर लूंगा। एक दिशा में अभ्यास प्रारंभ किया। संकल्प बढ़ा। वह दूर बैठा ही बिजली जलाने-बुझाने में सफल हो गया। इसको हम कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं दे सकते। वह केवल मानसिक शक्ति का एक प्रयोग-मात्र है। अमुक धारा में मन का प्रवाह ले जाया गया और वह सध गया । एक व्यक्ति ने प्रयोग किया कि मैं मन की शक्ति के द्वारा किसी को वरदान और किसी को शाप दूंगा, किसी पर अनुग्रह करूंगा और किसी पर निग्रह करूंगा। उसी धारा में मन को प्रवाहित किया और उसे वह शक्ति प्राप्त हो गयी। उसमें वरदान देने की शक्ति भी आ गयी और शाप देने की शक्ति भी आ गयी।
एक संन्यासी भिक्षा के लिए गया । बहिन ने सुना-अनसुना कर दिया । संन्यासी का क्रोध भभक उठा। उसने शाप देते हुए कहा-"भस्म हो जाओ।" स्त्री ने हंसते हुए कहा-"महाराज ! मैं वह चिड़िया नहीं हूं
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