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________________ मानसिक शक्ति का विकास और उपयोग २३३ सापेक्ष है । आठ सिद्धियों में एक सिद्धि है—अणिमा । इसके अभ्यास से शरीर हल्का हो जाता है। इतना हल्का कि वह चाहे जहां टिक सकता है, ठहर सकता है। यह योग की एक प्रक्रिया है किन्तु यह भी कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं है । जितनी सिद्धियां हैं, वे सब अध्यात्म के नीचे रह जाती हैं। ये सिद्धियां मानसिक शक्ति के जागरण और मांसपेशियों के समुदित व्यायाम के द्वारा उपलब्ध होती हैं । रूपाकोशा मगध देश की राजनर्तकी थी। आचार्य कपिलदेव के पास उसने नृत्य और संगीत का अभ्यास किया। धीरे-धीरे वह अपनी नृत्यकला में इतनी निपुण हो गयी कि सरसों के ढेर पर रखी सुई पर नाचने में वह सक्षम हो गयी। सरसों का एक दाना भी ढेर से अलग न हो और सुइयों से पर भी न विधे। यह था नृत्य का कौशल । रूपाकोशा उस नृत्य में उत्तीर्ण थी। अभी कुछ वर्षों पूर्व की घटना है । बीकानेर के महाराजा गंगासिंहजी की हीरक जयन्ती मनाई जा रही थी। एक नर्तक आया हुआ था। वह अपना नृत्य दिखा रहा था । एक मंच पर वह नाच रहा था। मंच के नीचे अनाज के दो-चार ढेर किए हुए थे। वह नर्तक मंच पर नाचते-नाचते अनाज के ढेरों पर थिरकने लगा। जिस रूप में वह मंच पर नाच रहा था उसी रूप में वह अनाज के ढेर पर नाच रहा था । अनाज के दाने ज्यों के ब्यों थे। अनाज के ढेर पर नाचा जा सकता है और सरसों पर रखी हुई सूइयों पर भी नाचा जा सकता है। इसका रहस्य यही है कि जब शरीर के गुरुत्वाकर्षण को अभ्यास के द्वारा, साधना के द्वारा कम कर दिया जाता है तब शरीर भारहीन हो जाता है। जब गुरुत्वाकर्षण समाप्त हो जाता है तब नतंक चाहे अनाज के ढेर पर नाचे या सुई पर नाचे, या अधर में नाचे, कोई अंतर नहीं आता। एक अन्तरिक्षयात्री जब अन्तरिक्ष की यात्रा करता है और गुरुत्वाकर्षण की सीमा से परे चला जाता है तब वह आकाश में तैरने लग जाता है। भारहीन अवस्था में कहीं भी अवस्थित होने में कोई कठिनाई नहीं होती। शिष्य ने पूछा- "भंते ! पदार्थ किस पर टिके हुए हैं ?" भगवान ने कहा-"वत्स ! पदार्थ स्व-प्रतिष्ठित हैं। वे किसी अन्य पदार्थ पर टिके हुए नहीं हैं।" ___यह कैसे हो सकता है ? स्पष्ट है कि हम पृथ्वी पर टिके हुए हैं। वृक्ष, पेड़-पौधे आदि सारे पदार्थ पृथ्वी पर टिके हुए हैं। यह कसे कहा जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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