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________________ किसने कहा मन चचल है आयाम प्रेक्षा हो सकता है। इस आयाम में किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती । मनुष्य स्वयं चलता है, प्रवृत्त होता है। चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा के अभ्यास के द्वारा सब कुछ घटित होता है । द्रष्टाभाव यह चौथा आयाम है । जब वह खुल जाता है तब रूपान्तरण घटित होता है। प्रेक्षा-ध्यान की एक महत्त्वपूर्ण निष्पत्ति है-अन्तःकरण का रूपान्तरण । साधना से सब कुछ एक साथ हो जाता है, यह अति-कल्पना है। साधना जादू का डंडा नहीं है कि उसे धुमाते ही सारे परिवर्तन घटित हो जाएं। इसे निष्पत्ति का आदि बिन्दु मानें । उपलब्धि होगी, पर धीरे-धीरे । ज्यों-ज्यों साधना परिपक्व होगी, मन की एक दिशागामिता सधेगी, आकर्षण की धारा मुड़ेगी तो सब कुछ प्राप्त होता जाएगा। हम दस दिन या एक महीने की साधना कर यह न माने कि हमने साधना की चोटी का स्पर्श कर लिया, हम वीतराग बन गए या सभी आकर्षणों से छूट गए, हमारी वासनाएं समाप्त हो गयीं। यह भ्रान्ति है। यह कुछ ही समय में घटित होने वाली अवस्था नहीं है । यह काल-सापेक्ष है। प्रेक्षा पद्धति के ग्रहण को आप यह मानें कि यह एक नया आयाम खुला है । इसमें प्रवेश कर आगे बढ़ना है। आगे बढ़ना अपने-अपने पुरुषार्थ पर निर्भर है । आगे बढ़ना अपनी-अपनी आस्था पर निर्भर है । आगे बढ़ना अपनी-अपनी साधना की दीर्घकालिता और निरंतरता पर निर्भर है। यदि पुरुषार्थ, श्रद्धा, दीर्घकालिता और निरंतरता बनी रही तो एक दिन साधना की चरम उपलब्धि हो सकती है, सिद्धि का शिविर हस्तगत हो सकता है। साधक वीतराग बन सकता है, आत्मा के अस्तित्व का साक्षात् कर सकता है। हमारा चरण उठा है। नई दिशा उद्घाटित हुई है। हमें चलना है, रुकना नहीं है । वास्तविकता को समझकर चरणन्यास करना है। साधना की चौथी निष्पत्ति है-अपनी समस्याओं का समाधान अपने-आप में ढूंढ़ना । इस खोज की मनोवृत्ति को जगाना चाहिए । जब हम बार-बार भीतर देखने का प्रयास करते हैं तब बाहर को देखने का चिर अभ्यास खंडित होने लगता है। राजनीति का सूत्र है-दूसरे को देखो। अध्यात्म का सूत्र है-अपने-आपको देखो। राजनेता सारा दोष दूसरों पर मढ़ता है। वही सफल राजनेता होता है जो दूसरों को अधिक से अधिक दोषी ठहराए और स्वयं दोषों से बच निकले। अध्यात्म इसके विपरीत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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