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साधना की निष्पत्ति
२१५.
धागा टूट जाता है
सफल आध्यात्मिक वह होगा जो अपने दोषों को पहले देखेगा । दूसरों के दोषों की ओर अंगुली नहीं करेगा । उसका सूत्र ही है-स्वयं को देखो । जब हम स्व-प्रेक्षा करने लग जाते हैं तब पर प्रेक्षा का और इसके साथ-साथ दूसरों से समाधान पाने की बात साधक अपने में ही सारे समाधान ढूंढ़ने लगता है और सूत्र उसे वहां उपलब्ध हो जाते हैं ।
भी छूट जाती है ।
समाधान के सारे
हम नहीं जानते कि हमारे भीतर सारे समाधान हैं, इसीलिए हम समाधानों की खोज बाहर में करते हैं । यदि यथार्थ में यह बात ज्ञात हो जाए तो हमारा भटकाव मिट सकता है ।
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एक-दो प्रयोगों की चर्चा प्रस्तुत करता जब कभी अकर्मण्यता, आलस्य या प्रमाद छा जाए तब हम दर्शन केन्द्र की प्रेक्षा करें। कुछ ही समय में आपमें ताजगी का संचार होगा । अकर्मण्यता, आलस्य और प्रमाद मिट जाएंगे । इन दोषों को मिटाने का उपाय आप स्वयं में है, फिर बाहरी उपाय क्यों ढूंढ़े जाएं ? आप आसन लगाकर बैठें। दस मिनट तक बालसूर्यं जैसे चमकते लाल रंग का अपने दर्शन केन्द्र पर ध्यान करें । दस मिनट के बीतते-बीतते आपको स्फूर्ति का अनुभव होने लगेगा । मन कर्मण्यता और उत्साह से भर जाएगा ।
कोई व्यक्ति मानसिक उत्तेजना से ग्रस्त है । वह यदि दस मिनट तक ज्ञान-केन्द्र पर नारंगी रंग का ध्यान करता है तो उत्तेजना शांत हो जाती है । कोई व्यक्ति वासनाओं के उभार से पीड़ित है। वह यदि दस मिनट तक ज्योति केन्द्र, ललाट के मध्य में ध्यान करे और आन्तरिक श्वास गले को छूते हुए ले तो वासनाएं शांत हो जाती हैं ।
ये चैतन्य- केन्द्रों पर ध्यान करने के कुछेक फलित । उनमें औरऔर समाधान भी हैं । प्रयत्न करने पर वे सारे खोजे जा सकते हैं । समस्या भी बाहर से लाते हैं, समस्या का भार बाहर से ढोते हैं और समाधान भी बाहर में खोजते हैं । भीतर कोई समस्या नहीं है, यह सच है । समस्या बाहर से ही आती है | परंतु उसका समाधान हम बाहर से ही क्यों लाएं ? भीतर उसका समाधान है । यह अनुभूति तब होती है जब हम चैतन्य - केन्द्र - प्रेक्षा करते हैं । हमारे भीतर समाधान बहुत हैं । सारे हमने खोज लिये, यह मैं नहीं कहता । जितने खोजे गए हैं, उनका हम उपयोग करें ।
साधना की चौथी निष्पत्ति है -अपनी समस्याओं का समाधान अपनेआप में ढूंढ़ना ।
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