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किसने कहा मन चंचल है
दुनिया का नमूना ही बदल जाए। आज के धर्मगुरु भी यही प्रयत्न कर रहे हैं कि आदमी देवता बन जाए, परमात्मा बन जाए। इसके लिए वे नाना प्रकार के उपक्रम प्रस्तुत करते हैं। किन्तु आज तक जो हुआ है वह अपर्याप्त है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि इन उपदेशों से कुछ भी नहीं हुआ। किन्तु मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि जो हुआ है वह नगण्य है, कुछ भी नहीं के समान है। शब्द का आलाप शाब्दिक ही रह जाता है। जब तक वृत्ति का रूपान्तरण नहीं होता, जब तक वृत्ति का मूल नहीं बदलता, तब तक वास्तविक रूपान्तरण घटित नहीं होता। इसका उपाय है। वह उपदेश में नहीं, क्रिया में है । यह शाब्दिक नहीं है ।
___उपाय किए बिना अन्तःकरण नहीं बदलता। जब तक अन्तःकरण नहीं बदलता तब तक बाहरी कलेवर बदल जाने पर भी कुछ भी नहीं बदलता । इतना मात्र होता है कि जो बीमारी बाहर होती है वह और गहरी चली जाती है। डॉक्टर के लिए समस्या बन जाती है। जो दिन में किया जाता था, वह रात में होने लगता है। जो प्रकाश में किया जाता था, वह अंधेरे में होने लगता है । केवल इतना परिवर्तन आ सकता है, और अधिक नहीं । अन्तःकरण बदले बिना आदमी कैसे बदले ?
जादूगर ने चूहे को बाघ बना दिया। सोचा कि लोगों को करतब दिखाऊंगा । करतब दिखाने का मौका आया। सामने से एक बिल्ली आई
और बाघ भाग खड़ा हुआ । जादूगर हैरान रह गया। उसने सोचा---'चूहा बाघ बन गया, पर उसका अन्तःकरण नहीं बदला। अन्तःकरण से वह चूहा ही रहा, इसीलिए बिल्ली को देखते ही वह भाग गया।'
जब तक अन्तःकरण नहीं बदलता तब तक चूहा चाहे बाघ बन जाए या और कुछ, वह बिल्ली से डरता ही रहेगा। अन्तःकरण बदले बिना जीवन की प्रक्रिया में परिवर्तन नहीं आता।
हमारी साधना परिवर्तन की साधना है। यह केवल कपड़े बदलने या शरीर को बदलने की साधना-मात्र नहीं है, यह अन्तःकरण को बदलने की साधना है।
अन्तःकरण को बदलने का उपाय है-चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा। हमारे शरीर में अनेक चैतन्य केन्द्र हैं। हम उनकी प्रेक्षा करते हैं। कभी हम तीन चैतन्य-केन्द्रों, कभी दो और कभी एक को देखते हैं । कभी पूरे वर्तुल में उनकी प्रेक्षा करते हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं । जैसे ही हमारा ध्यान जैसे ही हमारी मानसिक आंखें उन केन्द्रों पर टिकती हैं, वे सक्रिय हो जाते
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