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________________ साधना की निष्पत्ति तरण की बहुत बड़ी समस्या है। व्यक्ति ने बदलने के लिए हजारों प्रयत्न किए हैं । वह कितना साहित्य पढ़ता है, प्रवचन सुनता है, आदर्श पुरुषों की जीवन-गाथा पढ़ता है, कितने प्रलोभन और भय से वह गुजरता है, फिर भी वह नहीं बदलता और यदि कुछ थोड़ा-सा रूपान्तरण होता है तो वह नगण्यसा होता है । प्रत्येक व्यक्ति दूसरे को भला बनाने की बात निरन्तर सोचता है, चाहे फिर वह स्वयं भला हो या न हो। कवि कविताएं बनाता है और यही चाहता है कि उसी कविताओं से सारा रूपान्तरण घटित हो जाए। सारे आदमी कविता को सुनकर बदल जाएं। किन्तु वह स्वयं खाली ही रह जाता है। एक कवि ने अपनी पत्नी से कहा- "आज ऐसी कविता सुनाऊंगा कि सारी दुनिया में आग लग जाएगी।" पत्नी ने कहा--"क्यों शेखी बघारते हो ! आगे की बात छोड़ो। आज घर में कोयला नहीं है, लकड़ी नहीं है । अपने कविता-पाठ से चूल्हे को जला दो तो जानूं ।" दुनिया में आग लगाने वाला कवि अपने घर के चूल्हे में आग नहीं लगा पाता । दुनिया को बदलने का प्रयत्न करने वाला प्रवचनकार स्वयं को नहीं बदल पाता । दुनिया को हंसाने वाला स्वयं रो-रोकर जिन्दगी बिताता है। एक घटना याद आ रही है । ब्रिटेन का बहुत बड़ा हास्यकार था-ग्रेमाल्डी । वह बीमार हो गया। डॉक्टर के पास जाकर बोला--"डॉक्टर ! मेरी चिकित्सा करो। मैं बहुत दुःखी हैं । मैं बहुत खिन्न हूं। मैं मानसिक व्यथाओं से घिरा हुआ हं, पीड़ित हूं।" डॉक्टर ने उसका परीक्षण किया कुछेक प्रश्न पूछे । अन्त में डॉक्टर ने कहा- "मैंने तुम्हारी बीमारी का मूल पकड़ लिया है। मैं तुम्हें कोई दवा नहीं दूंगा । मेरा एक परामर्श मानो, तुम स्वस्थ हो जाओगे । तुम एक सप्ताह अपने देश के प्रसिद्ध हास्यकार प्रेमाल्डी के पास रहो। तुम नीरोग हो जाओगे । तुम्हारी मानसिक ग्रन्थियां खुल जाएंगी।" उसने सुना। वह अवाक् रह गया। आश्चर्य-भरी वाणी से वह बोला-"डॉक्टर ! मैं ही हूं ग्रेमाल्डी। दुनिया को हंसाने वाला, सुख देने वाला, तृप्ति देने वाला मैं ही हूं ग्रेमाल्डी । मैं कितना दुःखी हूं !" यह है संसार का रवैया। प्रत्येक कवि, साहित्यकार, नेता-सब दुनिया को बदलने में लगे हैं। वे स्वयं के अतिरिक्त सब-कुछ बदल देना चाहते हैं । वे यही चाहते हैं कि संसार का प्रत्येक आदमी पवित्र बन जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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