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________________ आजादी की लड़ाई २०३ साधना का क्षेत्र निर्विघ्न नहीं है । उसमें अनेक भुलावे हैं । उन भुलावों से साधक यदि अकर्मण्य बन साधना को भुला देता है तो साधना से भटक जाता है । यह बात सदा स्मृति में रहनी चाहिए कि जब अध्यात्म के पथ पर - चल पड़े हैं, लड़ाई प्रारंभ कर दी है तो अकर्मण्य नहीं बनना है । यदि वह अकर्मण्य बन जाए, पुरुषार्थं को छोड़ दे, वह कभी सफल नहीं होता । मार्ग में ही भटक जाता है । लक्ष्य छूट जाता है । आवश्यकता है कि साधक पुरुषार्थ करता रहे, दरवाजे को खटखटाता रहे । यह मानकर न बैठ जाए कि बाहर ताला लगा हुआ है। ताला नहीं है तो दरवाजा खुल जाएगा और यदि ताला लगा हुआ भी है तो भी प्रयत्न से खुल जायेगा । पुरुषार्थ के सामने वह बंद रह नहीं सकता । साधक यह मानकर प्रयत्न छोड़ दे कि आज के युग में अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान या केवलज्ञान तो प्राप्त हो ही नहीं सकता । वह प्रयत्न को चालू रखे । सब कुछ संभव है प्रयत्न करने वाले के लिए | सब कुछ संभव है कर्मण्य के लिए । सब कुछ असंभव है अकर्मण्य के लिए। सब कुछ संभव है पुरुषार्थी के लिए और सब कुछ असंभव है अ-पुरुषार्थी के लिए | जैन परंपरा के आचार्यों ने कहा - "जंबू स्वामी अंतिम व्यक्ति थे जिन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। उनके बाद कोई मोक्ष नहीं पा सकता । अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान नहीं हो सकते ।" आचार्यों ने इन विशिष्ट उपलब्धियों की प्राप्ति को सर्वथा नकार दिया, ताला ही लगा दिया। लोगों के मन में यह बात इतनी घर कर गयी कि उन विशिष्ट प्रक्रियाओं का प्रयत्न ही छूट गया । प्रयत्न ही नहीं रहा तो प्राप्ति की बात दूर हो गयी । कोई खड़ा ही न हो तो चलेगा कैसे ? चलने के लिए खड़ा होना आवश्यक है । उपलब्धि के लिए प्रयत्न आवश्यक है । प्रयत्न ही न हो तो उपलब्धि कैसे हो सकती है ? कुछ वर्षो पूर्व 'मनोनुशासनम्' ग्रन्थ का कार्य चल रहा था । जैन परंपरा में 'जिनकल्प' एक विशिष्ट साधना पद्धति है । उसका प्रसंग चला । अतीन्द्रियज्ञान की प्राप्ति का प्रश्न आया । आचार्यश्री ने कहा- "मैं पुरानें आचार्यों की अवज्ञा करना नहीं चाहता, किन्तु यह कहना अवश्य चाहूंगा कि जिन आचार्यों ने विशिष्ट उपलब्धियों के न होने का प्रतिपादन किया, उन्होंने जैन परंपरा का हित नहीं किया । उससे अहित ही हुआ । साधकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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