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अस्तित्व की खोज : सम्यग्दर्शन
दृश्य ।
श्वास को देखो। मन को देखो । शरीर को देखो। विचार को देखो। आभामंडल को देखो । प्राण को देखो । आप जानना चाहेंगे कि क्या श्वास आत्मा है ? क्या शरीर आत्मा है ? क्या मन आत्मा है ? क्या आभामंडल आत्मा है ? क्या प्राण आत्मा है ? कुछ चिन्तन करेंगे तो पता चलेगा कि श्वास आत्मा है । शरीर आत्मा है । मन आत्मा है । आभामंडल आत्मा है । प्राण आत्मा है । यदि प्राण आत्मा न हो तो फिर जीवित और मृत में कोई अन्तर नहीं रहेगा । यदि शरीर आत्मा न हो तो जीवित शरीर और मृत शरीर में कोई अन्तर नहीं रहेगा । यदि मन आत्मा न हो तो मन-सहित और मन-रहित में कोई अन्तर नहीं रहेगा। ये सब आत्मा हैं ।
___ आत्मा को देखने का पहला द्वार है-श्वास । भीतर की यात्रा का पहला द्वार है-श्वास । हम बाहर ही बाहर देखते हैं। मन बाहर की ओर दौड़ता है । जब भीतर की यात्रा शुरू करनी होती है, तब प्रथम प्रवेश-द्वार श्वास से गुजरना होता है । जब श्वास के साथ मन भीतर जाने लगता है तब अन्तर्यात्रा शुरू होती है। श्वास आत्मा है, शरीर आत्मा है, मन आत्मा है । जहां तक हम पहुंचना चाहते हैं वहां तक इनके द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।
श्वास का स्पर्श किए बिना, श्वास को देखे बिना शरीर को ठीक तरह से नहीं समझ सकते, नहीं देख सकते । शरीर को देखे बिना मन को नहीं देख सकते । मन को देखे बिना आभामंडल को नहीं देख सकते । आभामंडल को देखे बिना प्राण को नहीं देख सकते । और प्राण को देखे बिना उस चैतन्य तक नहीं पहुंच सकते जहां हमें पहुंचना है । यह पूरा का पूरा यात्रापथ है। यदि आत्मा तक पहुंचना है, सूक्ष्म तत्त्व तक पहुंचना है, अस्तित्व तक पहुंचना है तो इसी यात्रापथ पर चलना होगा। इसी क्रम से चलना होगा।
आप चाहें कि सीधे आत्मा को देख लें-यह भ्रांति होगी । मैं कहूं कि 'आत्मा को देखें'--यह भी भ्रांति होगी। आप यह मान लें कि उस परम सत्ता को, परम अस्तित्व को, चैतन्य को जो अमूर्त है, सूक्ष्म है, हमारे चर्मचक्षुओं का विषय नहीं है, उसे हम देख लें-यह कहना और ऐसा समझना बहुत बड़ी भ्रान्ति होगी।
'आत्मा से आत्मा को देखें।'
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