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८
किसने कहा मन चंचल है
इसका पहला अर्थ है -- मन के द्वारा श्वास के स्पंदनों को देखें । इसका दूसरा अर्थ है—-मन के द्वारा शरीर के प्रकंपनों को, संवेदनों
को देखें ।
इसका तीसरा अर्थ है— विचारों को देखें ।
इस स्थिति तक पहुंच जाने पर आभामंडल स्पष्ट हो जाता है, हो जाता है ।
दृष्ट
हमारे भीतर, हमारे चारों ओर सर्वत्र स्पन्दनों का संसार है । जिस व्यक्ति ने अपने आभामंडल का अनुभव किया है, वह जानता है कि हमारे भीतर और हमारे चारों ओर स्पन्दनों का वह अनन्त सागर है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । हमारे भीतर और हमारे बाहर (बाहर भी कुछ दूरी तक ) सागर तरंगित हो रहा है । आभामंडल तक पहुंचने के बाद हम उस प्राणशक्ति को देख सकेंगे जिसके द्वारा ये सारे स्पंदित होते हैं ।
श्वास आत्मा नहीं है । शरीर आत्मा नहीं है । मन आत्मा नहीं है । आभामंडल भी आत्मा नहीं है । किन्तु ये जिस शक्ति के द्वारा आत्मा हो रहे हैं, ये जिस शक्ति के द्वारा आत्मप्रतिष्ठित और आत्मकेन्द्रित हो रहे हैं वह है - प्राणशक्ति, प्राण की ऊर्जा । वह जिसके साथ सम्पर्क करती है और जिसमें संक्रान्त होती है वह शरीर सजीव हो जाता है, शरीर आत्मा बन जाता है । प्राण की ऊर्जा का मन के साथ संबंध होता है, मन सक्रिय हो जाता है, मन की सारी गतिविधि चालू हो जाती है । प्राण की ऊर्जा का श्वास के साथ सम्पर्क होता है, श्वास के स्पंदन शुरू हो जाते हैं । यह हृदय की धड़कन, श्वास का स्पंदन, मन की तरंगें और आभामंडल का बहुत सूक्ष्म और बहुरंगी स्पंदन - यह सारी सक्रियता प्राणशक्ति से आ रही है । इस प्राणशक्ति का उत्पत्ति स्रोत है— चैतन्य की धारा । प्राण की ऊर्जा हमारे समूचे शरीर तंत्र में प्राण संचालित करती है और जो अनात्मा है, अचेतन है, उन सबको सचेतन कर डालती है ।
• श्वास को देखना आत्मा को देखने का पहला पड़ाव है । • शरीर को देखना आत्मा को देखने का दूसरा पड़ाव है । • विचारों को देखना आत्मा को देखने का तीसरा पड़ाव है ।
• आभामंडल को देखना आत्मा को देखने का चौथा पड़ाव है ।
• प्राणशक्ति का साक्षात्कार आत्मा को देखने का पांचवां पड़ाव है ।
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