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अध्यात्म की यात्रा
हमने अध्यात्म की यात्रा शुरू की है। यह हमारे जीवन की नई यात्रा है, अपरिचित यात्रा है । इसके पथ से हम परिचित नहीं हैं । यह नया मार्ग है, जिससे परिचित होना है, हो रहे हैं। यह पथ लंबा है, यात्री लंबी है। हमें लंबे मार्ग को तय करना है ।
अध्यात्म की यात्रा भीतर की यात्रा है। अध्यात्म में दो शब्द हैंअधि+आत्मा । 'अधि' का अर्थ है-भीतर। अध्यात्म का अर्थ है-आत्मा के भीतर । आत्मा के बाहर-बाहर हम यात्रा कर रहे हैं। अतीत से करते रहें हैं । बाहर ही बाहर, बाहर ही बाहर। कभी भीतर जाने का अवकाश ही नहीं मिला। हमें सब कुछ वही अच्छा लगता है जो बाहर है। हम मानते हैं कि दुनिया में जो कुछ सार है वह बाहर ही है, भीतर कुछ भी नहीं । बाहर सार है और भीतर वह है जो सार को भोगता है। सार को करने वाला, लेने वाला, ग्रहण करने वाला भीतर है, परन्तु भीतर में कोई सार नहीं है। यदि भीतर में सार होता तो बाहर से सार लेने की आवश्यकता क्या होती ? भीतर में सार नहीं है, असार है, इसीलिए हम बाहर से सार लेकर भीतर भेजते हैं। यही हमारा अनुभव है। और इसी अनुभव के कारण हम भीतर में असार मानते हैं और बाहर में सार मानते हैं । हमने खोज शुरू की कि सार साक्षात् हो सके । बाहर के कण-कण में सार को खोजा, खोजते रहे हैं। आज भी खोजते हैं। विटामिन्स में सार है, प्रोटीन्स में सार है, सिनेमाघर और दुकान में सार है। खोज का निष्कर्ष निकाला कि सार बाहर है, भीतर नहीं।
___ हमने जब से भीतर की यात्रा शुरू की, अध्यात्म की यात्रा शुरू की, अपने भीतर चलना प्रारंभ किया, भीतर देखना शुरू किया तो सारी मान्यता बदल गयी । आज तक का अनुभव परिवर्तित हो गया। 'बाहर में सार है'-यह सर्वथा मिथ्या लगने लगा। 'भीतर में सार है'- यह सर्वथा सत्य प्रतीत हुआ । अनुभव की चिनगारियां उछली, स्फुलिंग बिखरने लगे और तब अनुभव हुआ कि जो कुछ सार है वह भीतर है, बाहर निस्सार ही
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