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किसने कहा मन चंचल है रहना चाहता है । कोई भी व्यक्ति अपने कार्य में हस्तक्षेप सहन नहीं करता तो फिर काल में हम हस्तक्षेप क्या करें ? हम वर्तमान को वर्तमान ही रहने दें, भविष्य को भविष्य ही रहने दें और अतीत को अतीत ही रहने दें। जब कभी आवश्यकता महसूस हो तो स्मृति को स्थान दें, और कल्पना को भी स्थान दें । जब आवश्यक न हो तो वर्तमान के काम में स्मृति और कल्पना को हस्तक्षेप न करने दें।
वर्तमान में जीने का अर्थ है-मन को विश्राम देना, भार से मुक्त होना, मानसिक तनाव से छुटकारा पाना ।
श्वासप्रेक्षा करने का अर्थ है-वर्तमान में जीने का अभ्यास करना । श्वास एक घटना है। यह वर्तमान की घटना है, अतीत की नहीं। यह वर्तमान की घटना है, भविष्य को नहीं । जिस क्षण में हम श्वास ले रहे हैं, उसी क्षण में उसे देख रहे हैं । यह वर्तमान का क्षण है। यह है वर्तमान में जीने का अभ्यास, वर्तमान में रहने का अभ्यास । जब हम वर्तमान में हैं, उसे देख रहे हैं, उस समय न कोई राग है, न कोई द्वेष है। क्योंकि जब स्मृति नहीं है तो राग भी नहीं है और द्वेष भी नहीं है । हम स्मृति और कल्पना से मुक्त तथा राग-द्वेष से मुक्त क्षण में जी रहे हैं। यह है शुद्ध चेतना का क्षण । यह है वर्तमान का क्षण । यहां न प्रियता है और न अप्रियता । न कोई अतीत का अनुभव है और न कोई भविष्य की चिंता । केवल वर्तमान के क्षण का जीवन है।
श्वास को देखने का अर्थ है-समभाव में जीना । श्वास को देखने का अर्थ है-वीतरागता के क्षण में जीना, राग-द्वेष-मुक्त क्षण में जीना। जो व्यक्ति श्वास को देखता है, उनका तनाव अपने आप विसजित हो जाता है। जो वर्तमान में जीता है, उसका तनाव अपने-आप विसजित हो जाता है।
हम शरीर को देखते हैं। शरीर को देखने का यह अर्थ नहीं है कि हम केवल चमड़ी को देखें । अवयवों के आकार-प्रकार को देखें। यह तो हम अनेक बार देख चुके हैं । शरीर-प्रेक्षा में हम ऐसा नहीं करते हैं । हम देखते हैं कि इस क्षण में हमारे शरीर में क्या घटित हो रहा है । सुख का संवेदन हो रहा है या दुःख का संवेदन हो रहा है। प्रियता का संवेदन हो रहा है या अप्रियता का संवेदन हो रहा है । क्या-क्या रासायनिक परिवर्तन हो रहा है। इन सबको हम देखते हैं । हमारे शरीर में वर्तमान क्षण में जो
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