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मानसिक तनाव का विसर्जन
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खाना-पीना हराम हो जाता है । यह क्यों होता है ? यह इसलिए होता है कि मनुष्य वर्तमान में नहीं रहता। उसने वर्तमान में रहना नहीं सीखा । वर्तमान में रहने का मतलब है कि हम जब जो कार्य करते हैं, उसके अतिरिक्त कोई भी स्मृति न सताए। खाने बैठे हैं, तो मन खाने में ही रहे । चलते हैं तो मन चलने में ही रहे । इधर-उधर न भटके । न अतीत में दौड़े और न भविष्य में छलांग लगाए । केवल वर्तमान की क्रिया के साथ संलग्न रहे । यह है वर्तमान में जीना। यह है वर्तमान क्षण में रहना ।।
सामने थाली परोसी हुई है। सारी सामग्री उपलब्ध है। व्यक्ति खा भी रहा है । फिर भी न जाने उसका मन कहां-कहां भटकता रहता है । मन' दुनिया-भर की थालियों पर घूमने लग जाता है । किसने कब कैसे अपमान किया ? किसने कब क्यों गाली दी? ये सब स्मृतियां उभर आती हैं । खाना तब केवल खाना नहीं रहता, और बहुत कुछ बन जाता है।
अध्यात्म कहता है-खाने के समय केवल खाएं । व्यर्थ ही संसार का चक्कर न लगाएं । इन स्मृतियों का प्रयोजन ही क्या है ? स्मृतियों या कल्पनाओं में फंसना मूर्खता है।
नास्तिक भी यही बात कहते हैं कि वर्तमान को छोड़कर, भविष्य की कल्पना करना मूर्खता है। प्राप्त सुखों को छोड़कर, अनागत सुखों को पाने की इच्छा करना अज्ञान है। वर्तमान में जीने की उनकी बात अच्छी है।
___ समझदारी की बात यह है कि जिस समय जो काम करना है उस समय वही काम करें, केवल वही काम करें। यह है वर्तमान में रहना। अतीत का द्वार भी बंद और भविष्य का द्वार भी बंद । दोनों द्वार बंद कर आराम से वर्तमान में रहें।
यदि हमें स्मृति करनी है या योजनाएं बनानी हैं तो हम उसी उद्देश्य से बैठें और जो आवश्यक स्मृतियां हों उन्हें करें, जो आवश्यक योजनाएं हों, उन्हें बनाएं । इसमें कोई हानि नहीं है । किन्तु बैठे किसी उद्देश्य से और करें कुछ और ही, यह उचित नहीं है। यहां तनाव उत्पन्न होता है, खिंचाव उत्पन्न होता है।
यह काल का द्वन्द्व है। वर्तमान काल यह कभी पसन्द नहीं करता कि उसके कार्य में अतीत हस्तक्षेप करे या भविष्य हस्तक्षेप करे। वह अतीत और भविष्य को अपनी सीमा में नहीं रखना चाहता। वह निर्द्वन्द्व अकेला ही
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