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- मानसिक तनाव का विसर्जन
श्रम | यह चक्र चलता रहता है ।
हम मन का श्रम तो करते हैं, बहुत करते हैं किन्तु उसको विश्राम -देना नहीं जानते । हम चिन्तन करना जानते हैं किन्तु अचितन की बात नहीं जानते, चिंतन से मुक्त होना नहीं जानते । जब हम सोचना प्रारंभ करते हैं, उसको तोड़ना कठिन हो जाता है। कठिन इसलिए कि हम अचितन बात - नहीं जानते ।
शरीर थक गया । हम लेट जाते हैं, विश्राम कर लेते हैं, थकावट मिट जाती । शरीर में स्फूर्ति आ जाती है । नींद ले लेते हैं तो भी शरीर को आराम मिल जाता है किंतु दिमाग को आराम नहीं मिलता । नींद में चिन्तन चालू रहता है, मन का तनाव बना रहता है सपने आते रहते हैं । उसकी श्रृंखला नहीं टूटती । मन उनमें उलझा रहता है । उसका तनाव नहीं टूटता । कुछ व्यक्ति पूरी नींद में सपने ही देखते रहते हैं । सारी नींद सपना बन जाती है । जब वे उठते हैं तब यह शिकायत करते हैं कि सात घंटा तक सोते रहे, नींद लेते रहे, किन्तु दिमाग हल्का नहीं हुआ। वह भारी ही बना रहा । नींद में भी मन को विश्राम नहीं मिलता । हम मन को विश्राम देना जानते ही नहीं तब मन विश्रान्त कैसे हो ?
हम श्वास की प्रेक्षा इसीलिए कर रहे हैं कि मन को कुछ विश्राम मिले। हम शरीरप्रेक्षा इसलिए कर रहे हैं कि मन को कुछ विश्राम मिले । हम मन को सुला सकें । सुलाने का अर्थ है उसे भारमुक्त कर देना, उसे भार से छुटकारा दिला देना, हल्का कर देना, खाली कर देना, उसे चिंतन से अचिन की अवस्था तक पहुंचा देना ।
मन को विश्राम देना तभी संभव है जब हम वर्तमान में रहना सीख जाएं। मनुष्य अतीत या भविष्य में अधिक रहता है, वर्तमान में बहुत ही कम रहता है । वह स्मृतियों की उधेड़बुन में या कल्पनाओं के ताने-बाने बुनने में व्यस्त रहता है । वह अनावश्यक स्मृतियां और कल्पनाओं के जाल में फंसा रहता है, अतः वर्तमान में रहने के लिए उसे बहुत अल्प समय मिलता है या समय मिलता ही नहीं ।
मनुष्य सोचता है कि यदि अतीत की स्मृतियां न की जाएं तो काम कैसे चल सकता है ? अतीत सुरक्षित कैसे रह सकता है ? यदि अतीत की स्मृति को छोड़ दें तो घर कैसे पहुंचेंगे ? घर की स्मृति करेंगे तभी घर पहुंचेंगे, अन्यथा नहीं । स्मृति के बिना हमारी जीवन-यात्रा चल नहीं
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