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मानसिक तनाव का विसर्जन
हम श्वासप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा और कायोत्सर्ग का अभ्यास करते हैं । "प्रश्न होता है कि श्वास को देखने का प्रयोजन क्या है? शरीरप्रेक्षा की "निष्पत्ति क्या है ? कायोत्सर्ग का फलित क्या है ?
आज के युग की सबसे बड़ी कठिनाई है-भारानुभूति । इसे हम तनाव कहते हैं । तनाव अर्थात् भारीपन । जब शरीर हल्का होता है तब • अनुभूति अच्छी होती है। जब शरीर भारी होता है तब अनुभूति • अच्छी नहीं होती। जब दिमाग भारी होता है तब एक प्रकार की अनुभूति होती है और जब दिमाग हल्का होता है तब दूसरे प्रकार की अनुभूति होती है।
हम भारमुक्त रहना चाहते हैं । हम हल्का रहना चाहते हैं। हम लघुता या लाघव का अनुभव करना चाहते हैं ।
साधना की प्रारंभिक निष्पत्ति है-लाघव, हल्कापन, भारमुक्त अवस्था, तनावमुक्ति ।
आज का आदमी तनाव का शिकार है । उसे शान्ति का अनुभव नहीं होता । वह निरंतर बेचैन रहता है । जब वह काम करते-करते थक जाता है तब वह विश्राम करता है । थकान के बाद विश्राम, श्रम के बाद विश्राम । एक आदमी कंधे पर भार ढो रहा है। चलते-चलते जब कंधा दर्द करने लगता है तब वह भार को दूसरे कंधे पर रखकर आगे बढ़ जाता है। जो कंधा थक गया था, उसे वह विश्राम देता है । चलते-चलते वह भार को नीचे रखकर पूरा विश्राम करता है। फिर वह भार को उठाकर चलता है और अपने गन्तव्य तक पहुंच जाता है। वहां भार को उतारकर ऐसा महसूस करता है कि मानो वह बिल्कुल भारमुक्त हो गया हो । वह भारमुक्त का अनुभव करता है, सुख की श्वास लेता है।
हम शरीर के श्रम को भी जानते हैं और उस श्रम को मिटाने का उपाय-विश्राम को भी जानते हैं । दोनों से हम परिचित हैं । दोनों का हम निरंतर उपयोग करते जा रहे हैं । श्रम के बाद विश्राम और विश्राम के बाद
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