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प्रवचन १४
संकलिका
• व्यग्रता
एकाग्रता। • एक साथ अनेक काम "एक ही काम । • हठधर्मिता समन्वय ।। • क्रोध, चिन्ता, निराशा, भय, चिड़चिड़ापन । • आकांक्षा से-ऐसा होता तो अच्छा होता । स्मृति, कल्पना । • प्रतीक्षा या धृति का विकास । • उपचार चेतन मन के स्तर पर । • उपचार अचेतन मन के स्तर पर । • बिम्ब का परिष्कार हो, प्रतिबिम्ब का नहीं।
श्वासप्रेक्षा-वर्तमान में जीना । • शरीरप्रेक्षा वर्तमान में जीना।
जो वर्तमान में जीता है, उसका तनाव अपने आप विसजित हो जाता है। • श्वासप्रेक्षा-समभाव में जीना । • शरीरप्रेक्षा-समभाव में जीना ।
जो समभाव में जीता है, उसका तनाव अपने-आप विसर्जित हो जाता
• तनाव के मुख्य कारण-~-अतीत में जीना, भविष्य में जीना। • उत्सुकता, व्यग्रता, आकांक्षा, आर्त्त-रौद्र-ध्यान । • शारीरिक-मानसिक तनाव क्रोध आदि आवेग पैदा करते हैं।
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