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किसने कहा मन चंचल है इससे परे हैं । आज तक जो कोशिकाओं और गुणसूत्रों की व्याख्या हुई है वह स्थूल शरीर के आधार पर ही हुई है । कोशिका की अत्यन्त सूक्ष्म संरचना को देखकर वैज्ञानिक आश्चर्य में डूब गए। एक सुक्ष्म कोशिका और इतनी जटिल संरचना । एक वर्ग इंच में ग्यारह लाख सतहत्तर हजार पांच सौ कोशिकाएं होती हैं । इतनी सूक्ष्म है इनकी संरचना ! इनका कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। जितने भी आनुवंशिक गुण और अवगुण हैं, उन सबका नियंत्रण ये छोटी-छोटी कोशिकाएं करती हैं। उनका लेखा-जोखा रखती हैं । पहली कोशिका जब नष्ट होती है और दूसरी कोशिका का निर्माण होता है तब पहली पीढ़ी वाली कोशिका अपनी भावी पीढ़ी की कोशिका को सारा दायित्व सौंप जाती है, सारी सूचनाएं दे जाती है। क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है-यह सारा बता जाती है। यह कितना आश्चर्यकारी कार्य है ! प्रश्न होता है कि यह घटित कैसे होता है ? आज का शरीर-विज्ञान भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पा रहा है । शरीर-वैज्ञानिकों ने कुछेक युक्तियां निकाली हैं और इस प्रश्न को समाहित करने का प्रयत्न किया है। विविध प्रकार की कोशिकाएं नाना प्रकार के प्रोटीनों का उत्पादन करती हैं और प्राकृतिक जगत् में विविधता बनाए रखती हैं। किन्तु आज भी यह समस्या सुलझ नहीं पाई है । यह एक बिन्दु है । इस पर खड़े होकर यदि हम आगे की ओर देखते हैं तो पता चलता है कि हमारे पास इस गुत्थी को सुलझाने का एक साधन है । वह है-कर्मशरीर । यह सूक्ष्मतम है । सारी व्यवस्था इसी से आ रही है । यह व्यवस्था स्वतः चालित है । अनन्त-अनन्त परमाणु हैं। सबका संचालन स्वतः होता है।
__ कर्म पुद्गलों का स्कंध अनन्तप्रदेशी होता है । वैसा स्कंध ही कर्म योग्य होता है। कर्म के अनन्तप्रदेशी स्कंध आत्मा के प्रदेशों से चिपके हुए हैं। इतना सूक्ष्म जगत् ! इतना विशाल जगत् ! एक वर्ग इंच में ग्यारह लाख से अधिक कोशिकाएं होती हैं किन्तु यदि सूक्ष्म शरीर-कर्मशरीर-की कोशिकाओं का लेखा-जोखा किया जाए तो एक वर्ग इंच में अरबों-खरबों कोशिकाओं का अस्तित्व ज्ञात होगा।
स्थूल या सूक्ष्म-सारे नियमन सूक्ष्म शरीर से होते हैं । वह नियंता है नियमन करने वाला है उसके आठ विभाग हैं । नियमन के आठ विभाग हैं । सब अपना-अपना काम संभाले हुए हैं ।
एक विभाग है-ज्ञान के नियमन का । वह जीव के ज्ञान का नियमन
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