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________________ स्थूल और सूक्ष्म की मीमांसा १३७ इन्द्रयों द्वारा देख सकते हैं और बुद्धि के द्वारा इसकी व्याख्या कर सकते हैं। प्राचीन काल में भी शरीर की व्याख्या बहुत की गई और आज के शरीरशास्त्रियों ने भी इसका बहुत विश्लेषण किया है । शरीर के एक-एक - अवयव की सूक्ष्मतम व्याख्या आज प्राप्त है । शरीर का छोटा या बड़ाऐसा कोई भी अवयव नहीं, जिसका सूक्ष्मतम विश्लेषण आज उपलब्ध न हो । प्राचीन काल में जो विश्लेषण किया गया वह देखने के आधार पर या अनु- मान के आधार पर किया गया था। आज का विश्लेषण वैज्ञानिक परीक्षणों और प्रयोगों के आधार पर हुआ है । शरीर अचेतन है, रूपीसत्ता है । वह दीखता है, इन्द्रिय-गम्य है, इसलिए उसकी इतनी व्याख्याएं संभव हैं; आज एक-एक कोशिका की संरचना भी अज्ञात नहीं है । डॉ० हुक शीशी का कार्क देख रहा था । उसने देखा कि कार्क में जालियां ही जालियां हैं । वह जालियों से संकीर्ण । वह आश्चर्य में डूब - गया । खुली आंखों से जो कार्क केवल एक कार्कमात्र ही दीख रहा था, एक भी जाली नहीं दीख रही थी, वह माइक्रोस्कोप से देखा खाने पर जाली-दार दीखने लगा । शरीर को देखा । उसमें असंख्य प्रकोष्ठ दीखे । उनका नाम रखा 'सेल्स' (Cells) | शरीर में और भी अनेक आश्चर्यजनक तत्त्व देखे । कोशिकाओं की संरचना देखी । आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । यह सारी स्थूल संरचना की कहानी है । यह हमारे स्थूल शरीर की बात है । हम आगे चलें । सूक्ष्म शरीर को देखने का प्रयत्न करें । पौद्गलिक रचना दो प्रकार की होती है । एक है सूक्ष्म रचना और दूसरी है स्थूल रचना । जैन पारिभाषिक शब्दावली में कहें तो सूक्ष्म रचना अर्थात् चतुःस्पर्शी पुद्गलों की रचना और स्थूल रचना अर्थात् अष्टस्पर्शी पुद्गलों की रचना । जिसमें आठ स्पर्श होते हैं वह स्थूल होता है और जिसमें केवल चार स्पर्श होते हैं वह सूक्ष्म होता है | स्थूल अष्टस्पर्शी है और सूक्ष्म चतुःस्पर्शी | अष्टस्पर्शी पौद्गलिक संरचना को देखा जा सकता है | चर्मचक्षुओं के द्वारा तथा वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा उसे पकड़ा जा सकता है । किन्तु चतुःस्पर्शी पौद्गलिक संरचना को देखना या जानना बहुत कठिन है, सरल नहीं है । मनोविज्ञान तीन प्रकार का मन मानता है— अवचेतन मन, चेतन मन और अचेतन मन । तीनों मस्तिष्क के ही विभाग हैं । सूक्ष्म शरीर की सत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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