________________
१२८
प्रमाण' ।
आज के शरीरशास्त्रियों ने शरीर में अवस्थित ग्रंथियों के विषय में बहुत सूक्ष्म विश्लेषण किया है । कोई आदमी बौना होता है । इसका कारण है कि थाइराइड ग्रन्थि के हारमोंस सतुलित नहीं है । इसी प्रकार लंबा होना, सुन्दर या असुन्दर होना, स्वस्थ या बीमार होना, बुद्धिमान या बुद्धिशून्य होना, विश्लेषण की शक्ति होना या न होना, जितने भी हमारे शारीरिक, मानसिक या मस्तिष्कीय परिवर्तन होते हैं वे सब भिन्न-भिन्न ग्रन्थियों के स्राव पर निर्भर हैं । ग्रन्थियों के स्राव इन सबको नियंत्रित करते हैं । इनके ह्रास या विकास में ये ही निमित्त हैं ।
किसने कहा मन चंचल है
कर्मशास्त्रीय भाषा में हम इसे समझें । आठ कर्मों में एक कर्म हैंनामकर्म । उसकी अनेक प्रकृतियां हैं, विभाग हैं । मनुष्य लंबा या बौना होता है-— संस्थान नामकरण के कारण । इसी प्रकार सुन्दर-असुन्दर होना, सुस्वर वाला या दुःस्वर वाला होना, सुभग या दुभंग होना - यह सब नाम - कर्म की विभिन्न प्रकृतियों के कारण होता है । अध्यात्म के तत्त्ववेत्ताओं ने कर्मशरीर के आधार पर सारा विश्लेषण किया । नामकर्म का सूक्ष्म अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे शरीर का सारा निर्माण, यश-अपयश, आदेश अनादेश - यह सब नामकर्म के आधार पर होता है । सूक्ष्म शरीर में जिस प्रकार के रसविपाक हो रहे हैं उन रस-विपाकों के आधार पर शरीर का सारा चक्र चलता है साधकों ने ध्यान की गहराई में जाकर सूक्ष्म शरीर से साक्षात् किया और सारी सूक्ष्मताओं का प्रतिपादन किया । विज्ञान अभी तक वहां नहीं पहुंच पाया है । उसकी पहुंच स्थूल शरीर तक हुई और उसने उस स्थूल शरीर की सूक्ष्मतम व्याख्या की । हम दोनों-कर्मशास्त्रीय विश्लेषण और शरीर शास्त्रीय विश्लेषण को मिलाकर देखें । हमें प्रतीत होगा कि दोनों का स्वर एक है । दोनों एक ही बात बता रहे हैं । केवल भूमिका का भेद मात्र है । धर्मशास्त्रीय भूमिका शरीरशास्त्रीय भूमिका से केवल ऊपर है । कर्मशास्त्र के वेत्ताओं ने मूल बिम्ब को देखकर प्रतिपादन किया और शरीरशास्त्र के वेत्ता प्रतिबिम्ब को देखकर प्रतिपादन कर रहे हैं । वे बिम्ब की भाषा में बोले और ये प्रतिबिम्ब की भाषा में बोल रहे हैं । भाषा तो एक ही होगी । कांच में प्रतिबिम्ब पड़ता है । आदमी बाहर खड़ा है । उसी का प्रतिबिम्ब कांच में पड़ता है । प्रतिबिम्ब वही होगा जो मूल बिम्ब है। इसमें अन्तर कैसे आएगा ? बिम्ब कुछ हो और प्रतिबिम्ब कुछ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org