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किसने कहा मन चंचल है
नते हैं तो जीव के शरीर को ही पहनते हैं । जिस पर बैठते हैं, सोते हैं, वे . सब जीव के ही शरीर हैं ।
हमारे सामने दो ही पदार्थ हैं- जीवयुक्त शरीर या जीवमुक्त शरीर । सृष्टि का सारा विस्तार जीव से ही हुआ है, किन्तु सृष्टि का विस्तार करने वाला यह जीव पर्दे के पीछे रहता है । ईश्वरवादी भी यही मानते हैं कि ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया किन्तु वह स्वयं पर्दे के पीछे रहता है । हम भी भाषा को बदलकर कह सकते हैं कि जीव ने सृष्टि का निर्माण किया, किन्तु वह स्वयं पर्दे के पीछे रहता है । यदि गहराई से देखें तो दोनों बातों में बहुत कम अन्तर है । जीव ईश्वर है । वह कर्ता है। उसने ही सारा निर्माण किया है ।
हमें जीव तक पहुंचना है। उस द्रष्टा और ज्ञाता तक पहुंचना है, जो पर्दे के पीछे है । किन्तु वहां तक पहुंचने के लिए पैरों में शक्ति चाहिए । पंगु पहाड़ पर नहीं चढ़ पाता । पंगु लम्बी यात्रा नहीं कर पाता । पैरों में पर्याप्त शक्ति चाहिए। पैरों की सुविधा के लिए हम जिन वाहनों का उपयोग करते . हैं, वे भी शक्तिशाली होने चाहिए । शक्ति चाहे पैरों की हो या वाहन की । शक्ति की प्रमुखता है । शक्तिशून्य का उपयोग नहीं है । एक आसन में बैठने के लिए शक्ति चाहिए । साधना करने के लिए शक्ति चाहिए | लम्बे ध्यान के · लिए शक्ति चाहिए । शक्तिहीन कुछ नहीं कर पाता ।
शक्ति को जागृत कैसे करें ? शक्ति जागरण के सूत्र कौन-से हैं ? हम - शक्ति जागरण के सूत्रों को खोजें । उन्हें उपलब्ध कर शक्ति को जागृत करें ।
शक्ति जागरण का पहला सूत्र है- दीर्घ श्वास- प्रेक्षा । यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है । इसे समझने से पहले हम श्वास को समझ लें । श्वास का सम्बन्ध - बहुत गहन है । वह बहुत गहराई में चला जाता है। इसे समझने के लिए जड़ को समझना जरूरी है, फूल को समझना जरूरी नहीं है । बहुत साधा-रण बात है कि जो जड़ को नहीं समझता वह फूल के रहस्य को भी नहीं समझ सकता। जिसका ध्यान जड़ की ओर जाता है, जो जड़ों को समझ लेता है, उसके लिए सब बातें सरल हो जाती हैं |
श्वास की जड़ को समझें । श्वास का संबंध है प्राण से, प्राण का सम्बन्ध है पर्याप्त से अर्थात् सूक्ष्म प्राण से और पर्याप्ति का सम्बन्ध हैं कर्मशरीर से । कर्म शरीर श्वास की जड़ है। श्वास इससे जुड़ा हुआ है । जब
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