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________________ शक्ति - जागरण के सूत्र है ?" " वत्स ! प्रमाद योग ( प्रवृत्ति) से प्रवाहित होता है ।" "भंते ! योग किससे प्रवाहित होता है ?" " वत्स ! योग वीर्य से प्रवाहित होता है ।" "भंते ! वीर्यं किससे प्रवाहित होता है ? " वत्स ! वीर्यं शरीर से प्रवाहित होता है ।' "भंते ! शरीर किससे प्रवाहित होता है ?” " वत्स ! शरीर जीव से प्रवाहित होता है ।" आगे प्रश्न के लिए अवकाश नहीं रहा । प्रश्न समाप्त हो गया । जीव से शरीर, शरीर से वीर्य, वीर्य से योग, योग से प्रमाद और प्रमाद से कर्मबन्ध - यह एक पूरा चक्र है, पूरी शृङ्खला है । वेदांत ने यदि इस बात को स्वीकृति दी कि चेतन अचेतन से पैदा होता है, तो यह सापेक्ष दृष्टि से सही हो सकती है । भगवान् महावीर ने और क्या कहा ? वे कहते हैं— जीव से शरीर उत्पन्न होता है । इसका अर्थ हुआ— चेतन से अचेतन उत्पन्न होता है । सापेक्ष दृष्टि से देखें तो कोई कठिनाई नहीं है । निरपेक्ष दृष्टि से देखेंगे तो कठिनाई आएगी, अन्यथा नहीं । जीव से अजीव (शरीर ) उत्पन्न होता है, यह सापेक्ष कथन सत्य है | १२५ शरीर का निर्माता कौन है ? शरीर का निर्माता एकमात्र जीव है । जीव ने अपने-आप शरीर का निर्माण किया है । यदि जीव न हो तो शरीर का निर्माण हो नहीं सकता । शरीर पर्याप्ति, आहार पर्याप्ति, भाषा, मन और श्वास – इन सबका निर्माता है जीव । ये सब पौद्गलिक हैं किन्तु पुद्गलों की निर्मिति नहीं है । केवल पुद्गल इनका निर्माण नहीं कर सकते । केवल पुद्गल न शरीर का निर्माण कर सकते हैं, न भाषा का निर्माण कर सकते हैं, न आहार, मन और श्वास का निर्माण कर सकते हैं । ये सब पौद्गलिक हैं, किन्तु इनका निर्माता पुद्गल नहीं है । आकाश में वे पुद्गल व्याप्त हैं जिन्हें भाषा के रूप में, मन के रूप में, श्वास के रूप में, शरीर के रूप में और आहार के रूप में बदला जा सकता है । किन्तु वे पुद्गल स्वयं इन सब रूपों में परिवर्तित नहीं हो सकते । जीव ही उनको इन रूपों में परिवर्तित कर सकता है । जीव की बहुत बड़ी सृष्टि है । सूक्ष्म से स्थूल का निर्माण जीव ही करता है । जितने भी दृश्य पदार्थ हैं, चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म, सबका घटक जीव है । जो पुद्गल हमारे उपयोग में आ रहे हैं, वे सब जीव के ही व्यक्त शरीर हैं । आप खाते हैं तो जीव के शरीर को ही खाते हैं । आप पह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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