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शक्ति-जागरण के सूत्र
वर्तमान युग ने शल्य-चिकित्सा में कीर्तिमान स्थापित किए हैं । मनुष्य (प्राणियों) के शरीर की चीर-फाड़ जितनी इस युग में हुई है उतनी अतीत में नहीं हुई । यदि हुई हो तो भी उसका विशद उल्लेख प्राप्त नहीं है । आज के शल्य-चिकित्सक ने शरीर के प्रत्येक हिस्से को खोलकर देख लिया है, जान लिया है। उससे कोई भी हिस्सा अज्ञात नहीं है । समूचे शरीर की चीर-फाड़ कर लेने पर भी उसे शरीर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिला। बहुत सूक्ष्म निरीक्षण के बाद कुछ भी उपलब्ध नहीं हुआ। इसके आधार पर यह धारणा बनी कि शरीर में शरीर के अतरिक्त और कुछ है ही नहीं।
प्राचीन काल की बात है। महाराजा प्रदेशी ने आत्मा के विषय में कुछ प्रयोग किए थे। वह आत्मा को प्रत्यक्ष देखना चाहता था, जानना चाहता था। उसने जीवित शरीर को तोला, मृत शरीर को तोला। वह जानना चाहता था कि आत्मा का वजन कितना है ? वह भारहीन है या भारयुक्त? वर्तमान के वैज्ञानिकों ने भी इस दिशा में प्रयत्न किया है। उनके पास सूक्ष्मतम उपकरण हैं । प्राचीन मान्यता में कुछ अन्तर आया है। महाराज प्रदेशी के पास सूक्ष्म उपकरण नहीं थे। वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका।
उसने दूसरा प्रयोग किया। आदमी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए । प्रदेशी पास में बैठा रहा । वह यह देखना चाहता था कि यदि शरीर में आत्मा नाम का कोई तत्त्व होगा तो वह अवश्य ही किसी अवयव से बाहर निकलेगा। वह देखता रहा । कुछ भी नहीं दीखा।
प्रयोग पहले भी होते थे । प्रयोग आज भी होते हैं। किन्तु आज भी यह प्रश्न असमाहित ही है कि आत्मा है या नहीं ? उसमें भार है या नहीं ? वह दृश्य है या नहीं ?
रूस के डॉक्टर किरलियान दम्पति के अन्वेषण से एक नए तथ्य को अभिव्यक्ति मिली। उन्होंने ऑरा का फोटो लिया। ऑरा या आभामंडल स्थूल दृष्टि से दृश्य नहीं होता। उसके लिए अति संवेदनशील कैमरे की आव
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