SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शक्ति-जागरण के सूत्र १२३ श्यकता होती है। उसी कैमरे के द्वारा किरलियान दम्पत्ति ने फोटो लेकर यह प्रतिपादित किया कि प्रत्येक प्राणी के चारों ओर आभामंडल होता है। डॉ० जे० सी० ट्रस्ट ने भी आभामंडल के फोटो लिये । उससे एक नई दिशा का उद्घाटन हुआ कि स्थूल शरीर के अतिरिक्त भी इसमें कुछ और है। सूक्ष्म का एक आयाम खुला। आज के वैज्ञानिक सूक्ष्म शरीर के फोटो लेने में भी सफल हो चुके हैं। एक व्यक्ति मर गया। मरते ही उसके फोटो लिये गए। कुछ धुंधले और कुछ चमकीले द्रव्य था वह संभवतः तेजस शरीर था, सूक्ष्म शरीर था। जब प्राणी मरता है तब शरीर में से तीन तत्त्व निकलते हैं---आत्मा, कर्मशरीर और तैजस शरीर । कर्मशरीर और तेजस शरीर-ये आत्मा को कभी नहीं छोड़ते । ये सदा आत्मा के साथ रहते हैं। ये तब तक आत्मा के साथ रहते हैं जब तक कि आत्मा पूर्णरूप से बंधन-मुक्त नहीं हो जाती। अनादिकाल से ये साथ हैं और अनन्तकाल तक साथ रह सकते हैं। तीनों तत्त्व साथ निकलते हैं। इनमें कभी वियोग नहीं होता । ऐसा नहीं होता कि आत्मा अकेला निकल जाए, कर्मशरीर और तेजस शरीर पीछे रह जाएं । कर्मशरीर निकल जाए और तेजस शरीर रह जाए--ऐसा कभी नहीं होता। तीनों साथ-साथ रहते हैं और साथ-साथ ही शरीर से निकलते हैं। तीनों का घनिष्ठ संबंध है । वह कभी टूटता नहीं । ___ एक प्रश्न होता है कि तेजस शरीर के फोटो ले लिये गए, परन्तु कर्मशरीर के फोटो क्यों नहीं लिये गए ? जैन दर्शन की व्याख्या के अनुसार कर्मशरीर के फोटो नहीं लिये जा सकते । यह संभव भी नहीं है । तीन हैं --- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और आत्मा । उनका संबंध इस प्रकार है--आत्मा, कर्मशरीर, तेजस शरीर और स्थूल शरीर । स्थूल शरीर के परमाणु स्थूल हैं । वे हमारी पकड़ में आ जाते हैं। उसके पश्चात् आता है तैजस शरीर । वह स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म है। फिर है कर्मशरीर। वह तैजस शरीर से भी सूक्ष्म है । फिर है आत्मा । वह सूक्ष्मतम है, अमूर्त है, अपौद्गलिक है। स्थूल शरीर से चलते हैं तो सूक्ष्मता आगे से आगे बढ़ती जाती है। स्थूल शरीर को देखा । तैजस शरीर को देखना उससे कठिन हुआ। तेजस शरीर को देखा । कर्म शरीर को देखना कठिन हो गया । मान लें कि कर्मशरीर को भी देख लिया तो भी आत्मा को देख पाना असंभव है, क्योंकि वह अमूर्त है, दीखता वही है जो मूर्त है । चाहे फिर वह स्थूल हो, सूक्ष्म हो या सूक्ष्मतम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy