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________________ किसने कहा मन चंचल है जाया जा सकता है । ध्यान दर्शन है, देखने की प्रक्रिया है । एक चौकीदार था। रात को पहरा दे रहा था। एक दिन अचानक ही वह अपने मालिक के पास आकर बोला- 'कल आप ट्रेन से सफर करने वाले हैं । इसे आप स्थगित कर दें । प्रवास न करें। कल प्रवास करना श्रेयस्कर नहीं है ।' मालिक बोला- 'भोले हो तुम । बहुत आवश्यक कार्य है। कंपनी के सारे अधिकारी वहां एकत्रित हो रहे हैं। बहुत महत्त्वपूर्ण निर्णय हमें लेने हैं। मैं न जाऊं तो वे सारे निर्णय नहीं ले पाएंगे। मुझे अवश्य ही जाना होगा | सारी तैयारियां की जा चुकी हैं ।' पहरेदार ने कहा- 'मैं इस महत्त्व को समझता हूं। परन्तु निषेध करने का भी एक प्रबल हेतु है । कल ही मुझे एक सपना आया था कि जिस ट्रेन में आप जायेंगे वह दुर्घटनाग्रस्त होगी । मेरे कहने से रुक जाइए । ' मालिक ने सोचा- ' प्रवासकाल में इस पहरेदार ने अपशकुन कर दिया । चलो, आज रुक जाऊं ।' मालिक रुक गया । दूसरे दिन ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई । अनेक व्यक्ति मर गए । मालिक ने पहरेदार को बुलाकर कहा - 'तुमने मेरी जान बचाई। इसके लिए मैं तुम्हें एक हजार रुपया इनाम में देता हूं और साथ ही साथ तुम्हें नौकरी से बरखास्त करता हूं ।' पहरेदार यह सुनकर स्तब्ध रह गया । एक ओर पुरस्कार और दूसरी और नोकरी की समाप्ति । मालिक ने कहा- 'मैंने तुम्हें सपने लेने के लिए यहां नौकर नहीं रखा है, चौकीदारी करने के लिए रखा है ।' जागरण का सबसे बड़ा सूत्र है - देखना । प्रत्यक्ष सबसे बड़ा प्रमाण है । परोक्ष प्रमाण नहीं हो सकता । सब प्रमाण प्रत्यक्ष से छोटे हैं । अनुमान प्रमाण उससे छोटा है, स्मृति प्रमाण उससे छोटा है, आगम प्रमाण उससे छोटा है | आगम भी हम उसको मानते हैं जिसने सत्य को साक्षात् देखा है और फिर कहा है । ऐसे व्यक्ति का कथन आगम बनता है । और वही हमें मान्य होता है | आगम का प्रामाण्य भी दर्शन के आधार पर है । अनुमान भी प्रमाण तब बनता है जब उसकी पृष्ठिभूमि में दर्शन हो । 'दृष्टपूर्वोऽयं --- यह मैंने पहले देखा है कि जहां-जहां धूम होता है वहां-वहां अग्नि होती है । देखते-देखते यह बात जब पुष्ट होती है तब व्याप्ति बनती है । दर्शन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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