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________________ किया जाये। नाम और स्थापना के बिना वस्तु की पहचान नहीं होती। वस्तु की पहचान के लिए निक्षेप आवश्यक है। इस प्रकार नाम, रूप और अवस्था में वस्तु का निक्षेपण करना न्यूनतम अपेक्षा है। निक्षेप के इन चार प्रकारों का ही प्रयोग ग्रन्थों में बहुलतया उपलब्ध होता है। जिनभद्रगणि ने एक ही वस्तु में चार पर्यायों की संयोजना की है अहवा वत्थूभिहाणं णामं ठवणा य जो तयागारो। कारणया से दव्वं कज्जावन्नं तयं भावो ॥ विभा, ६० वस्तु का नाम अपना अभिधान नाम निक्षेप है। वस्तु का अपना आकार स्थापना निक्षेप है। वस्तु का जो कारण है वह द्रव्य निक्षेप है। कार्यरूप में विद्यमान वस्तु भाव निक्षेप है। घड़े का ‘घट' नाम नामनिक्षेप है। घट का पृथु, बुघ्न, उदर आकार है वह स्थापना निक्षेप है। मृत्तिका घट का अतीतकालीन पर्याय है, कपाल घट का भविष्यकालीन पर्याय है। ये दोनों पर्याय घट पर्याय से शून्य होने के कारण द्रव्य निक्षेप है। कार्यापन्न पर्याय अर्थात् घट रूप में परिणत पर्याय भाव निक्षेप है। उत्तराध्ययन सूत्र की शान्त्याचार्यवृत्ति में कहा गया नाम, स्थापना द्रव्य और भाव-इन चार निक्षेपों में सब निक्षेपों का समावेश हो जाता है। जहां कहीं इनसे अधिक निक्षेपों का प्रयोग होता है, उसके दो प्रयोजन हैं १. शिक्षार्थी की बुद्धि को व्युत्पन्न करना, २. सब वस्तुओं के सामान्य, विशेष और उभयात्मक अर्थ का प्रतिपादन करना । नाम आदि निक्षेपों के माध्यम से शास्त्र का प्रतिपादन और ग्रहण सहज हो जाता है भण्णइ घिप्पइ य सुहं निक्खेव पयाणुसारओ सत्थं । धवला में निक्षेप की उपयोगिता के चार कोण बतलाए हैं १. अव्युत्पन्न श्रोता यदि पर्यायार्थिक दृष्टि वाला है तो अप्रकृत अर्थ का निराकरण करने के लिए निक्षेप करना चाहिये। २. यदि वह द्रव्यार्थिक दृष्टि वाला है तो प्रकृत अर्थ का निरूपण करने के लिए निक्षेप करना चाहिये। ३. यदि व्युत्पन्न होने पर भी संदिग्ध है तो उसके संदेह का निराकरण करने के लिए निक्षेप करना चाहिये। ४. यदि वह विर्यस्त है तो तत्वार्थ-निश्चय के लिए निक्षेप करना चाहिये। व्रात्य दर्शन - ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003131
Book TitleVratya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages262
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size10 MB
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